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________________ ___ साधो ! यह तो आपका उत्तमरूप ? और यह अवस्था ? | एवं सौंदर्य ? आपको इस अवस्थामें किसने दीक्षाकी शिक्षा दे दी ! इससमय आप क्यों यह शरीरसुखानेवाला तप कर रहे हैं । इससमय तप करनेसे सिवाय शरीर सूखनेके दूसरा कोई फायदा नहिं हो सकता।इससमय तो आपको इंद्रिय संबंधी भोग भोगने चाहिये । जिस मनुष्यने संसार में जन्म धारण कर भोग विलास नहिं किया । उसने कुछ भी नहीं किया। मने ! यदि आप मोक्षको जानेकेलिये तप ही करना चाहते हैं तो कृपाकर वृद्ध अवस्थामें करना ? इससमय आपकी वारी उम्र है। आपका मुख चंद्रमाके समान उज्ज्वल एवं मनोहर है । आपका रूप भी अधिक उत्तम है । इसलिये आप की सेवामें यही मेरी सविनय प्रार्थना है कि आप किसी उत्तम रमणीके साथ उत्तमोत्तम भोग भोगें। और आनन्दपूर्वक किसी नगरमें निवास करें । __मुनिराज गुणसागर तो अवधिज्ञानके धारक थे । भला बे ऐसी निकृष्ट भद्रा सरीखी स्त्रियोंकी वातोंमें कव आने वाले थे। जिससमय मुनिराजने भद्राके वचन सुने । शीघ्र ही उन्हों ने भद्राके मनके भावको पहिचान लिया । एवं बे उसै आसन्न भव्या समझ इसप्रकार उपदेश देने लगे___ वाले ! तू व्यर्थ रागके उत्पन्न . करनेवाले कामजन्य विकारोंको मत कर । क्या इसप्रकारके दुष्ट विकारोंसे तू Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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