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अपना परम पावन शीलवत नष्ट करना चाहती है ? क्या तू इसवातको नहीं जानती शील नष्ट करनेसे किन किन पापों की उत्पत्ति होती है ? शीलके न धारण करनेसे किन २ घोर दुःखोका सामना करना पड़ता है ? भद्रे ! जो जीव अपने शील रूपी भूषणकी रक्षा नहीं करते वे अनेक पापों का उपार्जन करते हैं। उन्हें नरक आदि दुर्गतियों में जाना पड़ता है । एवं वहां पर कठिनसे कठिन दुःख भोगने पड़ते हैं । तथा भद्रे ! शीलके न धारण करनेसे संसारमें भयंकर वेदनाओं का सामना करना पड़ता है । कुशीली जीव अज्ञानी जीव कहे जाते हैं। उनक कुल नष्ट होजाते हैं। चारो ओर उनकी अपकीर्ति फैल जाती है । और अपकीति फैलने पर शोक संताप आदि व्यथा भी उन्हें सहनी पड़ती हैं । इसलिये यदि तू संसारमें सुख चाहती है । और तुझै रमणीरत्न वननेकी अभिलाषा है तो तू शीघ्र ही इस खोटे शीलका परित्याग करदे। उत्तम शीलवतमें ही अपनी बुद्धि स्थिर कर । अपने चंचल चित्त को कुमार्गसे हटाकर सुमार्गमें ला । एवं अपने पवित्र पतिव्रतधर्मका पालन कर । वाले ! जो स्त्रियां संसारमें भलेप्रकार अपने पतिवतधर्मकी रक्षा करती हैं । उनकेलिये अति कठिन वात भी सर्वथा सरल हो जाती हैं। अधिक क्या कहा जाय पतिव्रतधर्म पालन करनेवाली स्त्रियोंका संसार भी सर्वथा छूट जाता है । उन्हें किसीप्रकारकी मुसोवतका सामना नहीं करना पड़ता।
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