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________________ १५४ ) I स्त्री दूसरी नहीं । किंतु खेद है । जैसी तू रूपवती गुणवती चतुरा है । वैसा ही तेरा पति कुरूपवान निर्गुण एवं मूर्ख किसान है । प्यारी व हेन ! अतिकुरूप बलभद्रके साथ, मैं तेरा संयोग अच्छा नहीं समझती । मुझे विश्वास है कि वलभद्र सरखि कुरूप पुरुषसे तुझे कदापि संतोष नही होता होगा ? तुम सरीखी सुंदर किसी दूसरी स्त्रीका यदि इतना बदसूरत पति होता तो वह कदापि उसके साथ नही रहती । उसै सर्वथा छोड़कर चली जाती । न मालूम तू क्यों इसके साथ अनेक क्लेश भोगती हुई रहती है ? । दूतीकी ऐसी मीठी वोलीने भद्रा के चित्तपर पक्का असर डालदिया । भोली भद्रा दूतीकी बातों में आगई । वह दूती से कहने लगी । बहिन ! मैं क्या करू ? स्वामी तो मुझे ऐसा ही मिला हैं । मेरे भाग्य में तो यही पति था । मुझे रूपवान पति मिलता कहांस ? तथा ऐसा कह भद्राका मुख भी कुछ ग्लान होगया । भद्रा की ऐसी दशा देख दूती मनमें अति प्रसन्न हुई । किं तु अपनी प्रसन्नता प्रगट न कर वह भद्राको इसप्रकार समझाने लगी । भद्रे बहिन ! तू क्यों इतना व्यर्थ विषाद करती है । इसी नगरीमें एक वसंत नामका क्षत्रिय पुरुष निवास करता है । वसंत अति रूपवान गुणवान एवं धनवान है । वह तेरे ऊपर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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