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________________ ( १४३ ) घरकी छतपर खड़ी थी । दैवयोगसे वसंतकी दृष्टि मद्रापर पड़ी । भद्राकी खुबसूरती देख वसंत पागलसा होगया सारी हुशियारी उसको किनारा कर गई । कामदेवके तीक्ष्ण air वसंत के शरीरको भेदन करने लगगये । उसका दिनोंदिन काम जनित संताप बढ़ताही चलागया । दाहकी शांति केलिये उसने चंदनरस चंद्रकिरण कमल कपूर उत्तम शीतल जल अदि अनेक पदार्थों का सेवन किया । किं तु उसके दाहकी शांति किसीकदर कम न हुई । किंतु जैसे अग्निपर घृत डालन से उसकी ज्वाला और भी अधिक बढ़ती जाती है । उसीप्रकार शीतलवत्त्र फूलमाला मलयंचंदन आदिसे उस उल्लूवसंतका मन्मथसंताप दिनोंदिन बढ़ता ही चलागया । भद्राके विना उसे समस्त संसार शून्य ही शून्य प्रतीत होनेलगा । सोते उठते वैठते उसके मुखसे भद्रा शब्दही निकलने लगा । भद्राकी चिंता में सारी भूख प्यास वसंतकी एक ओर किनारा कर गई । कदाचित् अवसर पाकर वसंतने एक चतुर दूती वुलाई। और सारी अपनी आत्मकहानी उसे कह सुनाई । एवं शत्रि ही उसै अपना संदेशा कह भद्रा के पास भेज दिया । वसंत की आज्ञानुसार दृती शीघ्र ही भद्रा के पास गई । भद्राको देख दूतीने उसके साथ प्रवल हितैषिता दिखाई । एवं मधुर शब्दों में उसै इसप्रकार समझाने लगी । भद्रे ! संसार में तू रमणी रत्न है । तेरे समान रूपवती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat . www.umaragyanbhandar.com
SR No.035265
Book TitleShrenik Charitra Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadhar Nyayashastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1914
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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