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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
पया या छः काय व्रत स्वीकार करने के लिए किये जाने वाले प्रत्याख्यान, जितने करण और योग से चाहें, उतने करण व योग से कर सकते हैं। कोई दो करण तीन योग से पाँच मानव द्वार के सेवन करने का त्याग करते हैं। यानी यह प्रतिज्ञा करते हैं कि मैं मन, वचन और काय से पाँच प्रास्रव द्वारों का सेवन न करूँगा, न दूसरे से कराऊँगा। इस तरह की प्रतिज्ञा करने वाला व्यक्ति, प्रतिक्षा करने के पश्चात जितने समय तक के लिए प्रतिज्ञा ली है उतने समय तक न तो स्वयं ही व्यापार, कृषि या दूसरे प्रारम्भ, समारम्भ के कार्य कर सकता है, न अन्य से कह कर करवा ही सकता है। लेकिन इस तरह की प्रतिक्षा करने वाले के लिए जो वस्तु बनी है, उस वस्तु का उपयोग करने से प्रतिज्ञा नहीं टूटती है। इस व्रत को एक करण तीन योग से भी स्वीकारा जा सकता है। जो व्यक्ति एक करण तीन योग से ग्रह व्रत स्वीकार करता है
और आस्रव द्वार के सेवन का त्याग करता है, वह स्वयं तो भारम्भ, समारम्भ के कार्य नहीं कर सकता, लेकिन यदि दूसरे से
दया व्रत करे, उसकी निन्दा करना अनुचित है। इसी प्रकार दया व्रत करने वाले लोग भी यदि रसनेन्द्रिय पर संयम रखें, तो किसी को इस व्रत की निन्दा करने का अवसर ही न मिले और यह व्रत आदर्श माना जावे।
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