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देशावकाशिक व्रत की दूसरी व्याख्या
या छः काया रूप व्रत उपवास करके भी किया जा सकता है
और उपवास करने की शक्ति न हो तो आयंबिल आदि करके भी किया जा सकता है। रस-हीन भोजन न किया जा सके तो एकासना करके भी किया जा सकता है, तथा यदि कारण वश ऐसा कोई तप न हो सके, तो एक से अधिक बार भोजन करके भी किया जा सकता है। * लेकिन दया या छः काया व्रत करके जितना भी तप और त्याग पूर्वक रहा जावे, उतना ही अच्छा है।
__ * कई लोग दया या छः काया करके भी रसनेन्द्रिय पर संयम नहीं रखते हैं, किन्तु उस दिन विशेष सरस और पौष्टिक भोजन करते हैं। अन्य दिनों की अपेक्षा जिस दिन दया या छः काया व्रत किया जाता है, उस दिन विशेष स्वादिष्ट एवं इन्द्रियों को उत्तेजित करने वाला पौष्टिक आहार करते हैं, बल्कि कई लोग तो इस व्रत का उद्देश्य न जानने के कारण, श्रेष्ठतम भोजन करने पर ही दया या छः काया का होना मानते हैं। इस कारण बहुत से लोगों की दृष्टि में दया या छः काया व्रत उपहास का कारण बन गया है। ऐसे लोग कहने लगते हैं कि दया या छः काया का तप तो उत्तम भोजन करने के लिए ही किया जाता है। यद्यपि दया या छः काया करने वाले को रसनेन्द्रिय वश में रखनी चाहिये। लेकिन जिनसे ऐसा नहीं होता है या जो ऐसा नहीं करते हैं उन लोगों की निन्दा करके रह जाना और स्वयं कुछ न करना, यह बड़ी भारी भूल है। जो लोग स्वयं कुछ न करके भी करने वाले की निन्दा करते हैं, उनके लिए उचित तो यह है कि वे अपनी अशक्तता को समझ कर जो लोग दया व्रत करते है उनकी सराहना करें, किन्तु इसके बदले किसी भी रूप में दया करने वाले को निन्दा करके और कर्म बांधते हैं। इसलिए कोई किसी भी रूप में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com