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________________ ( संह ) कमजोर होगा तो कहीं भी जीवन यात्रा भंग हो सकती है । श्रतएव गृहस्थाश्रम के रथ की सुन्दर गति के लिये स्त्री और पुरुष दोनों का समान रूप से ढ़ और सबल होना परमावश्यक है । स्त्री 'शक्ति' है तो पुरुष उस शक्ति का संचालक है । शक्ति 'अबला' नहीं हो सकती । वह 'सबला' है । हमारे देश में सिंह को वाहन बनाने वाली दुर्गा की पूजा होती है जो शक्ति का देवता मानी जाती है | भारत में यदि स्त्री अबला वन गई है तो यह हमारी सामाजिक व्यवस्था या पद्धति का परिणाम है । हमारे समाज का निर्माण ही इस प्रकार का है कि पुरुष पौरुप प्रधान है और स्त्री आर्थिक बन्धनों में जकड़ी हुई दासी के समान है जिसे अनेक सदियों से व्यापकरूप में अपनी शक्तियों का विकास करने का मौका नहीं दिया गया। जब कभी मौका दिया गया तो पुरुष के बराबर रहने की तो बात ही क्या है कई बार वह उन से भी आगे बढ़ जाती है । वास्तव में प्रारंभ में स्त्री या पुरुष किसी को भी जिस ढांचे में डाल दिया जाय वह वैसा ही बन जाता है । जहां पुरुषों को आजीविका के लिये कठिन परिश्रम करना पड़ता है वहां पुरुष बलवान् और स्त्रिय निर्बल रह जाती हैं और जहां पुरुष की अपेक्षा स्त्रियें कठिन शारीरिक परिश्रम करती है वहां पुरुष निर्बल रह जाते हैं और स्त्रियां बलवती होती हैं । आज ऐसी अनेक पहाड़ी जातियें हैं जिन में पुरुष घर का काम संभालते हैं और स्त्रियें बाहर के कृषि श्रादि कठिन कार्य को करती है । वहां स्त्रियँ बलवती होती हैं और पुरुष निर्बल । श्रतएव स्त्रियों का बलापन कोई स्वाभाविक दोष नहीं है किन्तु सामाजिक जीवन के संगठन का परिणाम है । प्राचीन इतिहास और धर्म ग्रन्थों के पढ़ने से पता चलता है www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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