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अर्धनारी नरवपुः प्रचण्डोऽति शरीरवान् ।
विभजात्मानमित्युक्त्वा तं ब्रह्मान्तर्दधे ततः ॥ अर्थात्
सृष्टि के प्रारम्भ में रुद्र प्राधे शरीर से पुरुष और श्राधे से स्त्री हुए। यह देवकर ब्रह्मा को सन्तोष हुआ और उन्हों ने कहा कि अब इम का विभाग करो और सृष्टि चलाओ। किसी भी वस्तु का यदि विभाग कर दिया जाय तो उसके मूलाधार में फरक नहीं पड़ सकता । एक विशाल सरिता के अनेक प्रवाह होने पर भी मूलश्रोत एक ही रहता है। इस प्रकार स्त्री और पुरुष दोनों का मूल आधार एक ही है अतएव दोनों समान हैं । दोनों में ऊँच नीच कोई नहीं। इसी प्रकार भविष्य पुराण के सातवें अध्याय में लिखा है:
पुमानद्धपुमांस्तावद्यावद्भार्या न विन्दति ।।
अर्थात्: - पुरुष का शरीर तब तक पूर्णता को प्रास नहीं कर सकता जब तक कि उसके श्राधे अङ्ग को पत्नी आकर नहीं भर देती।
उसी पुराण में एक और ऐसा ही श्लोक श्राता है:___एकचक्रो रथो यद्वदेकपक्षो यथाखगः ।
श्रमार्योंऽपि नरस्तद्वदयोग्यः सर्व कर्मसु ।।
अर्थात्:-जैसे एक पहिये का रथ नहीं चल सकता और एक पंख से कोई पदी उड़ नहीं सकता इसी प्रकार भार्या से रहित पुरुष भी किसी भी काम को करने में समर्थ नहीं हो सकता।
गृहस्थाश्रम भी एक रथ के समान है जिस के स्त्री और पुरुष दो पहिये हैं। दोनों पहिये समान और दृढ़ होंगे तभी जीवनयात्रा सुचारुरूप से चल सकती है। दोनों में से यदि एक भी बोरा या
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