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ही कृपा की है । वे कहते हैं कि स्त्रो यदि कुरूप हो या अन्य कोई साधारण भी दोष हो तो पुरुष को अधिकार है कि तुरंत किसी दूसरी सुदरी से अपने घर की शोभा बढ़ा सकता है । और यदि एक से सन्तुष्ट नहीं तो दस, बीस पचास सौ जितनी भी चाहे अपनी वासना पूर्ति के लिए रख सकता है किन्तु स्त्री का पति तो:
दुःशीलो दुर्भगो वृद्धो जड़ो रोग्यधनोऽपिवा । पतिः स्त्रोभिन हातभ्यः...........
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अर्थात्:-पति चाहे क्रूर स्वभाव का हो, अभागा हो, वृद्ध हो मूर्ख हो. रोगी अथवा निर्धन हो पत्नी को चाहिये कि वह कभी उसका स्याग न करे।
पति की मृत्यु हो जाने पर स्त्री को अवश्य उसके साथ सती हो जाना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से ही अागामी जीवन में उसी पति को पा सकती है । यह आदर्श पुरुष ने केवल स्त्री के लिए ही रिजर्व रखा है। यदि स्त्री की मृत्यु हो जाए तो पुरुष को उसके साथ बल मरने का कहीं विधान नहीं है । उसे दूसरे जन्म में वही इस बन्म पाली पत्नी मिले यह चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं । ऐसी चिन्ता स्त्री जाति के ही हिस्से में ही आती है।
___इतना ही नहीं गोदान, कनकदान, और रजतदान की तरह स्त्री दान का भी विधान मिलता है । बहुपत्नी वाले यजमानों से सुन्दर पलियों के हड़पने के लिये उच्च कुलोत्पन्न प्राचार्यों ने सुरन्त इस महामन्त्र की रचना कर दी।
सर्वेष्वेव दानेष भार्यादानं विशिष्यते।
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