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में उत्पन्न होने के कारण प्राजन्म नीच कार्य करने को वाध्य नहीं करते थे । मानव समाज का संगठन योग्यता और उत्कृष्टता के सिद्धान्तों पर अवलम्बित था। देशकाल और परिस्थिति के परिवर्तन के कारण वैदिक, जैन और बौद्ध तीनों धर्मों में भेदक विचार अवश्य उत्पन्न होते गए किन्तु तीनों के अन्तस्तल में एक ही संस्कृति की झलक पूर्ववत् ही विद्यमान है। शुद्ध भारतीय जीवन रेखा अति प्राचीनकाल से तीनों धर्मों का प्राधार रही है । अनेक युगों से भारत के जीवन के प्रवाह को प्रसारित करने वाली सरिता एक ही है। किन्तु प्रवाह भिन्न है। एक ही वृक्ष की अनेक शाखायें है और एक ही सूर्य की अनेक किरणे हैं।
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