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दया भाव तथा बड़ों से श्रादर सत्कार के साथ व्यवहार करता है। ऐसे पुरुष को महापुरुष कहते हैं । केवल धन या ऊंचा कुल या जाति और अधिकार से महानता नहीं आती।"
अनेक योग्य विद्वान् और देश हितैषी पुरुष जिनकी कीर्ति की ध्वजा हजारों वर्ष से संसार में फहरा रही है, प्रायः नीचे कुल से उत्पन्न हुए थे । ऊंचे कुल और ऊची जाति का होने से बड़ाई नहीं आती। प्रकृति पर ध्यान करो तो यही दशा जड़खान तक चली गई है कि छोटी वस्तुओं में बड़े रत्न होते हैं-देखो कमल कीचड़ से ही निकलता है, सोना मिट्टी से, मोती सीप से, रेशम कीड़े से, जहरमोहरा मेंडक से, कस्तूरी मृग से, अाग लकड़ी से, मीठा शहद मक्खी से, ("महात्मा बुद्ध")
इस के अतिरिक्त बौद्धों में जो शुद्धि का प्रचार था वह कर्म मूलक वर्णव्यवस्था के कारण ही चल सका। यदि बौद्धों में शुद्धि का प्रचार न होता तं। बौद्ध धर्म इतना महान् धर्म कभी न बन पाता जितना कि आज है।
इस प्रकार वैदिक, जैन बौद्ध इन तीनों महान् धर्मों में वर्णव्यवस्था प्रारंभ से ही जन्म से नहीं मानी जाती थी किन्तु इसका अाधार योग्यता पर अवलम्बित था । जो मनुष्य विद्या, सत्य, सदाचार, अध्ययन और अध्यात्मिक विद्या में उत्कृष्ट योग्यता प्राप्त कर लेता था वह ब्राह्मण बन जाता था, जो वीरता के काम में नैपुण्य प्राप्त करता था वह क्षत्रिय कहलाता था, बो वाणिज्य और शिल्पकला में प्रख्याति प्राप्त करता था वह वैश्य कहलाता था और जो सेवाभाव में अपना जीवन लगाता था उसको लोग शूद्र समझते थे । तीनों धर्मों के सिद्धान्त किसी भी व्यक्ति को देवयोग से शूद्र कुल
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