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________________ ( ७० ) बातें सुनते होंगे । बहुत से द्विजन्मा आर्य लोग भी उनके पवित्र धार्मिक उद्देश्य से सहमत हो गए और बौद्ध धर्म देश के एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैल गया।" इस प्रकार महात्मा बुद्ध ने जाम मिद्ध जाति-व्यवस्था का विरोध और खण्डन करके उच्च कहलाने वाली जातियों के अन्याय और अत्याचारों में पिसती हुई दलित जाति को अपने गले लगाया । और मनुष्य जाति को मानवता का सच्चा मार्ग प्रदर्शित किया । अगस्त १९४० के 'अनेकान्त' पत्र में श्री हा. वी. एल जैन ने महात्मा बुद्ध के उच्च कुल और उच्च जाति के विषय में महावाक्य इस प्रकार दिये हैं। "ऊंची जाति, पुराना कुल, बाप दादा से पाया हुश्रा धन, पुत्र पौत्र, रूप रंग श्रादि का जो अभिमान करता है। उसके बराबर कोई मूर्ख नहीं । क्योंकि इन के पाने के लिये उसने कौनसी बुद्धि खर्च की। किसी बुद्धिमान् ने कहा है कि जो लोग बड़े घराने के होने की ढोंग मारते हैं वे उस कुत्ते के सहश हैं जो सूखी हड्डी निचोड़ कर मगन होता है।" महान् पुरुष के लक्षण है-(१) जिसे दूसरे की निन्दा बुरी लगती है और ऐसी बात को अनसुनी करके किसी से उसकी चर्चा नहीं करता । (२) जिसे अपनी प्रशंमा नहीं सुहाती पर दूसरे की प्रशंसा से हर्ष होता है। (३) जो दूसरों को सुख पहुंचाना अपने सुख से बढ़ कर समझता है। (३) जो छोटों से कोमलता और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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