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________________ ( ६७ ) प्रकार एक राजकुमार अपनी बहिन के लिये राज त्याग कर वैश्य बन जाता है। पाश्चात्य विद्वान् गइस डेविडस अपनी बौद्ध भारत' Buddh ist India नामक पुस्तक में लिखते हैं: "प्रायः सभी समाजिक महत्व की श्रेणियों में स्त्री पुरुषों के पारस्परिक विवाहों के अनेक उदाहरण पुरोहितों के धर्मग्रन्थों में भी पाए जाते हैं । केवल यही नहीं किन्तु ऊंचे वर्णों के पुरुषों का नीच पर्ण की स्त्रियों से विवाह और नीचवर्ण के पुरुषों का ऊंचे वर्ण की कन्याओं के साथ विवाह इस के अनेक उदाहरण पाए जाते हैं ।" बहुन से विद्वानों का तो कथन है कि जन्मगत वर्णव्यवस्था के विरुद्ध महात्मा बुद्ध ने जो प्रावाज उठाई थी उसी के परिणाम स्वरूप बौद्ध धर्म विश्र में व्यापक रूप से फैला। महात्मा बुद्ध के जन्म के पूर्व काल में जन्मगत वर्णव्यवस्था बहुत भय नक रूप धारण किये हुए थी। उस समय भारतीय समाज में ब्राह्मण ही सर्वसवा थे। उन्होंने जन्मगत बर्णव्यवस्था का प्रचार करके. समाज में अनुचित लाभ उठाया, और अपना स्वार्थ मिद्ध किया। उन्होंने जन्मगत वर्णव्यवस्था की स्थापना करके चारों वर्गों के लिये पृथक् पृथक कानूनों की रचना की जिनमें अपने लिये अनुचित दया की व्यवस्था की और छोटी जातियों के लिये अनुचित कठोरता की व्यवस्था दी। शूद्र जाति को अत्यावश्यक शिक्षा श्रादि अनेक बीवन की सुविधाओं से वंचित किया। ब्राह्मण वर्ण के लोग उस समय अपने उच्च आचरण से पतित होने लग गए थे और मानवता को भूल गए थे। ऐसे युग में महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ। महात्मा बुद्ध ने अन्धविश्वास, अत्याचार और अन्याय का पूर्णशक्ति से विरोध किया और लोगों का कल्याण किया। इसी सत्य की पुष्टि करते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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