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में तलवार लेकर क्षत्रिय वर्ण की, उरु से चलने का संकेत करते हुए गैश्यवर्ण की और चरणों से शूदों की उत्पत्ति की। ऋषभ देव के पुत्र सम्राट भरत ने शास्त्र पढ़ाते हुए मुख से ब्राह्मणों को पैदा किया।
. इस के अतिरिक्त कल्पसूत्र में जो महावीर स्वामी का जीवन चरित्र दिया गया है उससे भी जैन धर्म में क्षत्रिय की उत्कृष्टता सिद्ध होती है । भगवान् महावीर स्वामो पहिले देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में पाए । तब देवताओं ने सोचा कि सारे तीर्थकर चत्रिय के उत्तम कुल में जन्म लेने आए हैं अतः यह अच्छा नहीं हुआ कि भगवान् महावीर स्वामी को ब्राह्मण के कुल में जन्म लेना पड़ेगा । देवताओं ने हरिनगमेशी देवता को गर्भ परिवर्तन का कार्य सौंपा। अन्त में हरिनैगमेशी देवता ने देवानन्दा ब्राह्मणी से उस गर्भ का अपहरण किया और त्रिशला त्रासी की कोख में उस गर्भ को स्थापना की। कुछ विद्वानों ने इस गर्भ परिवर्तन को असम्भव माना है और कुछ ने रज से वीर्य की प्रधानता मान कर भगवान् महावीर को ब्राह्मण बताया है किन्तु यहाँ हमें इन बातों से कोई मतलब नहीं । यहां केवल इस घटना का उल्लेख करने का यही अभिप्राय है. कि जैन धर्म में भी बोब धर्म की तरह क्षत्रिय जाति को ऊंचा माना गया है। जैनधर्म क्योंकि बौधर्म से प्राचीन है अतः संभव है कि वर्णव्यवस्था की इस मर्यादा को बौद्धों ने जैनधर्म से अपनाया हो!
अस्तु, बौद जातकों में यत्र तत्र ऐसे कई कथानक मिलते हैं बिन से बौद्धधर्म का कर्मगत वर्णव्यवस्था को मानना सिद्ध होता है । एक कथा में एक क्षत्रिय राजकुमार किसी सुन्दरी के प्रेम में फंस कर कुम्हार और रसोइये प्रादि के काम को भी करने लगता है। इसी
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