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प्रकार पाया जा सकता है ? यह बताकर मेरा संशय दूर करो । परमात्मतत्व का वर्णन करते हुए महामुनि ने कहा:
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नवि मुडिएण समणो, न श्रकारेण बम्भणो । न मुणो रत्रासेणं, कुसचीरेण न तावसो ||३१|| समयाए समणी होई, बम्भचेरेण बम्भणो । नाणेण य मुखी होई, तवेण होई तात्रसो ||३२|| कम्मुरणा बम्मणो होई, कम्मुरणा होई खत्तियो । वईसो कम्मुणा होई, सुद्दो हवई कम्मुला ||३३|| अर्थात्ः -
कोई मनुष्य पुरुष सर मुंडाने से श्रमण नहीं बन सकता | कार के नापमात्र से ब्राह्मण नहीं बन सकता । जङ्गल में बास करने से मुनि नहीं बन सकता और न ही कुश चीर धारण से तपस्वी ही बन सकता है ।
समता से श्रमण, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण, ज्ञान से मुनि और तपस्या करने से ही मुनि बना जा सकता है । ब्राह्मण का कर्म करने से मनुष्य ब्राह्मण बन जाता है । क्षत्रिय का काम करने से क्षत्रिय, वैश्य का काम करने से वैश्य और शूद्र का काम करन से ही शूद बनता है ।
महामुनि ने कहा कि इस प्रकार उत्तम गुणों से युक्त जो वास्तव में द्विजोत्तम हैं वे ही परमात्म तत्व को समझते हैं ।
इसी प्रकार की कथा उत्तराध्ययन सूत्र के भी श्राती है । यह कथा हरिकेशी मुनि की है। जन्म एक चाण्डाल कुल में हुआ था । तपस्या के
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१२वें अध्ययन में हरिकेशी मुनि का प्रभाव से बे एक
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