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________________ [ ६१ ] जैन थे। इनकी राणियों में से एक शूदा भी थी जिससे महापद्म का जन्म हुआ था। चम्पा के श्रेष्ठी पालित थे। उन्होंने एक विदेशी कन्या से विवाह किया था। प्रीतंकर सेठ जब विदेश में धनोपार्जन के लिये गए थे तो वहां से एक राजकन्या को ले आए थे जिसके साथ उनका विवाह हुआ था। इस काल के पहले से ही प्रतिलित जैन पुरुष जैसे चारुदत्त अथवा नागकुमार के विवाह वेश्या पुत्रियों से हुए थे। सरांशतः, उम समय विवाह सम्बन्ध करने के लिए कोई बन्धन नहीं था । सुशील और गुणवाली कन्या के साथ उसके उपयुक्त वर विवाह कर सकता था । स्वयंवर की प्रथा के अनुमार विवाह को उत्तम समझा जाता था।" इसके अतिरिक्त उत्तराध्ययन के २५ में अध्ययन की महामुनि की कथा किस जैन श्रावक से भूली है। ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हा एक जयघोष नामका याज्ञिक ब्राह्मण था। उस समय एक ब्रह्मचारी महामुनि भ्रमण करते करते २ वाराणसी नगरी में पहुंचे और बाहिर एक उद्यान में ठहर गए । उस समय उस पुरा में विजयघोष नामका वेदपारंगत ब्राह्मण यज्ञ कर रहा था। उस यज्ञ में वह मुनि भिक्षा के लिये गया। उस साधु को देखते ही याज्ञिक ने भिक्षा देने से इन्कार कर दिया और कहा कि जो वेदपारंगत, याज्ञिक और ज्योतिः शास्त्र को जानने वाले ब्राह्मण हैं उन्हीं को वहां से भिक्षा मिल सकती है । वह महामुनि इस प्रकार का उत्तर पाकर न क द्ध ही हुश्रा और न प्रसन्न ही। उस ने कहा कि तुम वेद, यश, धर्म और परमात्म तत्व को समझते ही नहीं हो। यदि जानते होतो बेतारो। वह याशिक ब्राह्मण मुनि के प्रश्नका उत्तरदेने में असमर्थ था। उसने हाथ जोड़ कर कहा:- महामुनि ! वेद, यज्ञ धर्म और परमात्म तत्व को मुझे बतायो । परमात्माद को किस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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