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कन्या वृणीते रुचितं स्वयंवरगतावरम् । कुलीनमकुलीनं वा क्रमोनास्ति स्वयंवरे ॥
अर्थात्:- स्वयंवर में गई हुई कन्या अपनी रुचि के अनुसार पुरुष का वरण करती है। वहां कुलीन और अकुनीन का विचार नहीं किया जाता है। सच मुच उस ममय विवाह क्षेत्र अति वशाल था। चारो वर्गों के स्त्री पुरुष सानन्द परसार विवाह सम्बन्ध करते थे। इतना ही क्यों, म्लेच्छ और वेश्याओं आदि से भी विवाह होते थे। राजा श्रेणिक ने ब्राह्मणी से विवाह किया था । जिमके उदर से मोक्षगामी अभयकुमार नामक पुत्र जन्मा था । वैश्य पुत्र जीधर कुमार ने क्षत्रिय विद्याधर गरुड़ वेग की कन्या गन्धर्वदत्ता को स्वयवर में वीणा बजा कर परास्त किया और विवाहा था। स्वयंवर में कुनीन अकुलीन का भेद भाव नहीं था। विदेह देश के धरणो तिलका नगर के राजा गोविन्द की कन्या के स्वयंवर में ऊपर तीन वर्णो वाले पुरुष श्रावे थे । जीवनधर कुमार के ये मामा थे। बंबंधर ने चन्द्रक यन्त्र को बेध कर अपने मामा की कन्या के साथ पाणिग्रहण किया था। पल्लव देश के राजा की कन्या का सर्प विष दूर करके उसे भी जीव धर ने व्याहा था । वणिक पुत्र प्रीतंकर का विधाह राजा अयसेन की पुत्री के साथ हुअा था। विवाह सम्बन्ध करने में जिस प्रकार वर्ण-भेद. का ध्यान नहीं रखा जाता था वैसे को धर्म विरोध भी उसमें बाधक नहीं था। वसुमित्र श्री जैन थे किन्तु उन की पत्नी धन श्री अबैन थी। साकेत का मिगार सेठी जैन था किन्तु उसके पुत्र पुण्यवर्धन का विवाह बौद्धधर्मानुयायी सेठ धनंजय की पुत्री विशाखा से हुअा था । सम्राट् श्रेणिक के पिता उपश्रेमिक ने अपना विवाह एक भील कन्या से किया था।
भगवान् महावीर के निर्वाणोपरान्त नन्दरामा महानन्दिन्
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