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शूदा में निषाद द्वारा उत्पन्न पुत्र "पुकस" तथा शूद्ध से निषाद कन्या में जायमान पुत्र कुक्कुट कहे जाते हैं ||१८||
क्षत्ता द्वारा उग्र कन्या में जन्मा हुत्रा पुत्र " श्वपाक " कहा जाता है । वैदेह से अम्बष्ठ नाम्नी कन्या में उत्पन्न पुत्र वेण कहलाता है ॥ १६ ॥
द्विजाति की सवर्णा कन्याओं में उत्पन्न पुत्रों का यदि यज्ञोपवीत संस्कार न हो तो वे " व्रात्य" कहे जाते हैं ॥ २० ॥
ब्राच्य संतान से पापात्मा 'भूर्जकण्टक" पुत्र जन्मता है। देश भेद से इसी को 'श्रावन्त्य', 'वाटधान', पुष्पत्र " तथा "शैख" भी कहते हे ॥ २१ ॥
क्षत्रिय जाति की व्रात्य से उत्पन्न पुत्र, मल, मल, निच्छिवि, नट, करण, रवस. तथा द्रविड़ कहलाते हैं ।। २२ ।
प्राजकल उपलब्ध सूत, श्राभीर निषाद और शेख श्रादि अनेक जातियों की उत्पत्ति चारों वर्णों के अन्तर्जातीय विवाह सम्बन्धों से किस प्रकार होती गई यह मनु जी की राजनैतिक व्यवस्था से पाठकों को भली भाँति स्पष्ट हो गया होगा !
इस के अतिरिक्त लोगों के भिन्न भिन्न पेशे या व्यवसाय भी अनेक नवीन जातियों की उत्पत्ति में नवीन कारण बने । जैसे सोने का काम करने वाले स्वर्णकार या सुनार, लोहे का काम करने वाले लोहकार या लुहार, चमड़े का काम करने वाले चर्मकार या चमार, वस्त्र धोने का काम करने वाले धोबी, क्षौरकर्म करने वाले नापित या नाई, तैल निकालने वाले तेली, वस्त्र बुनने का काम करने वाले तन्तुवाय या जुलाहे, इत्यादि अनेक जातियों के नाम उनके कर्म या
व्यवसाय के आधार पर पड़े ।
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