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( ५३ )
ब्राह्मणादुप्रकन्यायामावृतो नाम जायते ।
भोरोऽम्बष्ठ कम्यायामायोगव्यां तु धिग्वणः ||१५|| जातो निषादाच्छूद्रायां जात्या भवति पुक्कसः । शूद्राज्जातो निषाधातु स वै कुक्कुटकः स्मृतः ||१८|| क्षतुर्जातस्तथोप्रायां श्वपाकः इति कीर्त्यते । वैदेहकेन त्वम्बष्ठयामुत्पन्नो वेण उच्यते ॥ १६॥ द्विजातयः सवर्णासु जनयन्त्य व्रतांस्तु यान । तान्सावित्री परिभ्रष्टान् वात्यानिति विनिर्दिशत् ||२०|| व्रात्यात्तु जायते विप्रात्पापात्मा भूर्जकण्टकः । आवन्यवाटधानौ च पुष्यधः शैरव एव च ॥ २ ॥ भल्लो मल्लश्च राजन्याद् वात्यानिच्छिविरेव च । नटश्च करणश्चैव ससो द्रविड़ ए च ||२२||
अर्थात्ः - ब्राह्मण से व्याही हुई वैश्य कन्या में जो कोई पुत्र उत्पन्न होवे वह 'श्रम्बलु' कहाता है । और शूद कन्या में जो उत्पन्न होवे वह 'निषाद' कहाता है उसी को पाराशव भी कहते हैं ||८||
क्षत्रिय से व्याही हुई शूद होता है उसका स्वभाव कुछ क्षत्रिय है । उसी को 'उग्र' भी कहते हैं ||६||
कन्या में उत्पन्न पुत्र क्रूरकर्म वाला तथा कुछ शूद्र से मिलता जुलता
क्षत्रिय द्वारा ब्राह्मण की कन्या में जो पुत्र उत्पन्न हो वह सूतं बाति का कहा जाता है ।
वैश्य से क्षत्रिय तथा ब्राह्मण कन्या में उत्पन्न पुत्र 'आवृत', श्रम्ब नाम की कन्या में बायमान " श्राभीर" एवं आयोगवी में जायमान बालक "धिग्वण" कहा जाता है ॥ १५ ॥
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