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वैश्य वर्ण की और शूद्रा श्रौर ब्राह्मणों को चारों वर्षों
है ।
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क्षत्रिय को क्षत्रिया वैश्या तथा शश, की कन्याओं से विवाह करनेका अधिकार
चारों वर्ण अपने २ वर्ण में विवाह सम्बन्ध करके जो संतान उत्पन्न करते हैं वह संतान ही शुद्ध ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र मानी जाती है । जैसे:1 --
सर्व वर्णेषु तुल्यासु पत्नीष्त्रक्षतयोनिषु । श्रानुलोम्येन संभूता जात्या ज्ञ ेयास्त एव ते ||
मनु श्र० १०. श्लोक ५०. अर्थात्ः - इन चार वर्णो में सवर्ण अक्षतयोनि विवाहिता स्त्रियों में अनुलोम क्रम से जो संतान उत्पन्न होती है जैसे ब्राह्मण से ब्रह्मणी में जो पुत्र उत्पन्न होगा वह ब्राह्मण कहलावेगा । क्षत्रिय से क्षत्रिया में उत्पन्न क्षत्रिय, वैश्य से वैश्या में उत्पन्न वैश्य होता है ।
इसके विपरीत जैसा कि मनु जी ने ऊपर भिन्न वर्णों में भी उत्तरोत्तर विवाह का विधान किया है उस से जो सन्तति उत्पन्न होती है वही आज की सैंकड़ों जातियों की उत्पत्ति में मूल कारण है । उनकी उत्पत्ति के विषय में भी मनुस्मृति में पर्याप्त विवर्ण मिलता है जैसे:
ब्राह्मणाद्वैश्यकन्यायामम्वष्टो नाम जायते ।
निषादः शूद्रकन्यायां यः पारशव उच्यते ।। श्र० १०. लोक ८.
क्षत्रियाच्छद्र कन्यायां क्रराचार विहारवान् । क्षेत्र शूद्रवपुर्जन्तुरुप्रो नाम प्रजायते ॥ ६ ॥
क्षत्रियाद्विप्रकन्यायां सूतो भवति जातितः । वैश्यान्मघवैदेहो राजविप्रांगना सतौ ॥११॥
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