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श्रौत सूत्र में मिलता है। उसमें इसका प्रयोग वर्ण के अर्थ में नहीं किया किन्तु परिवार या कुल के अर्थ में मिलता है । परन्तु जैसे २ वर्ण व्यवस्था जन्म सिद्ध अधिकारों में फंसती गई नैसे २ वर्ण के स्थान में जाति शब्द का प्रयोग विशेष रूप से होने लगा। अन्त में जाति शब्द का प्रयोग इतना अधिक प्रचलित हो गया कि वर्ण शब्द उसके सामने लुप्त सा हो गया। श्रान कल भी हमारे देश में सर्वत्र जाति शब्द का ही प्रयोग होता है। ब्राह्मण वर्ण, क्षत्रिय वर्ण, गैश्य वर्ण और शूद वर्ण के स्थान में ब्राह्मण जाति क्षत्रिय जाति, वैश्य जाति और शूद्र जाति का प्रयोग करते हैं ।
।। अनेक जातियों की उत्पत्ति ॥
प्रारम्भ में जब वर्णव्यवस्था का युग शुरु हुआ तो चार ही वर्ण थे । अाज की भाषा में चार जातिय थीं। इन्हीं चार बातियों में से अाज की सैंकड़ों जातियों की उत्पत्ति किस प्रकार हुई इसका पता बहुत कुछ मनुस्मृतिसे चल जाता है । मनु जी की राजनीति के अनुसार ब्राह्मण को तो चारों वर्णों की कन्याश्रों के साथ विवाह करने का अधिकार है और बाकी के वर्ण या जातियें अपने से नीचे किसी भी वर्ण की कन्या के साथ विवाह सम्बन्ध कर सकती हैं किन्तु अपने से उच्च वर्ण के साथ नहीं।
शूद्रव भार्या शूदस्य सा च स्वा च विशः स्मृते। ' ते च स्वाचैव राज्ञश्च ताश्च स्वाचाग्रजन्मनः ।।
मनु श्र० ३ श्लोक १३. अर्थात्:- शूद्धा ही शूद्र की स्त्री हो सकती है दूसरी नहीं । वैश्य को
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