SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४६ ) में वर्णव्यवस्था की परिपाटी का दिग्दर्शन नितान्त आवश्यक हो जाता है। तीनों धर्मों की साथ साथ प्रगति होने के कारण तीनों ने जो एक दूसरे की सामाजिक व्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला है उसकी उपेक्षा नहीं की बा सकती । सामाजिक धार्मिक और राजनैतिक श्रादि सभी क्षेत्रों में यह प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। ॥ वैदिक वर्ण व्यवस्था । चारों वेदों में सब से प्राचीन ऋग्वेद माना जाता है । इस वेद के दस मंडल हैं। प्रथम नौ मण्डलों में कहीं भी वर्णव्यवस्था का विधान नहीं पाया जाता। दशम मंडल में वर्णव्यवस्था का विधान मिलता है जो इस प्रकार है:ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्वाहु राजन्यः कृतः । उरू तदस्य यवश्यः पद्भ्यां शूद्रोऽजायत् ॥ इस मंत्र में ब्राह्मण की मुख से, क्षत्रिय की भुजात्रों से, वैश्य की उरू से और शूद्र की पैरों से तुलना या उत्पत्ति ध्यान देने योग्य है। इस मंत्र के आधार पर बहुत से विद्वानों ने वैदिक काल में जन्मगत बव्यवस्था सिद्धर्ण करने की कोशिश की है किन्तु भाषा विज्ञान के पण्डितों ने यह सिद्ध कर दिया है कि ऋग्वेद के दशम मंडल की रचना प्रथम नौ मण्डलों के बहुत बाद की है। दशम मंडल की भाषा से ही यह बात सिद्ध हो जाती है कि उसकी भाषा प्रथम नौ मंडलों की भाषा से भिन्न प्रकार की है। अतः ऋग्गैदिक काल में वर्ण व्यवस्था का अस्तित्व नहीं माना बा सकता। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy