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- जैन धर्म में वर्णव्यवस्था
जैसा कि पहले भी बता चुके है वैदिक, जैन और बौद्ध ये तीनों धर्म अति प्राचीन काल से साथ साथ चले आए हैं अतः तीनों का एक दूसरे पर प्रभाव पड़ता रहा है। तीनों धर्मों के अनुयायी एक दूसरे के सिद्धान्तों को समय २ पर अपनाते रहे हैं | और एक दूसरे से प्रभावित होते रहे हैं । निस्सन्देह तीनों का जीवन चिरकाल से पारस्परिक संघर्षमय चलता रहा है । और प्रत्येक ने अपने अपने सिद्धान्तों को ही एक मात्र कल्याण का साधन माना है किन्तु यह संघर्ष ऐसा ही था जैसा कि तीन सहोदर भाइयों का होता है। तीनों धर्मों के धर्म ग्रन्थों को यदि सूक्ष्म दृष्टि से पढ़ा जाय तो उसके निचोड़ में अति प्राचीन भारतीय सभ्यता की एक ही झलक Eष्टगोचर होती है। तीनों धर्मों की गहराई में एक हो संस्कृति छिपी मिलती है । ठीक इसी प्रकार जैसे तीन सहोदर भाइयों में पारस्परिक मतभेद के होने पर भी मातृस्नेह का श्रोत समान रूप से ही वहा करता है । अतएव वैदिक, जैन और बौद्ध इन तीनों में किसी एक के सिद्धान्त पर उसी के दृष्टि कोण से विवेचन करना या कोई निर्णय देना उस मन्तव्य के साथ अन्याय करना होगा। किसी भी विषय का विश्लेषण तीनों धर्मों के सिद्धान्तों को ध्यान में रखते हुए तुलनात्मक दृष्टि से ही करना चाहिये । ऐसा करने से ही यह सन्दर और निर्णयात्मक हो सकता है। अतएव जैन धर्म में वर्णव्यवस्था के विश्लेषण के साथ साथ वैदिक और बौद्ध धमों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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