________________
[ ३६ ]
-
बन्ध्या, पुत्रहीना, जिस स्त्री के कुल में कोई न हो, पतिव्रता विधवा तथा रोगिणी स्त्री के धन का रक्षक राजा होता है।
जैन राजनीति का मन्तव्य इस से सर्वथा भिन्न है हेमचन्द्र जी लिखते हैं:
अनपत्ये मृते पत्यौ सर्वस्य स्वामिनी वधूः। अर्थात्- पति यदि निःस तान मर जाय तो उस की सारी सम्पत्ति की अधिकारिणी उस की पत्नी होती है । इसी प्रकार आगेःभ्रष्टे नष्टे च विक्षिप्ते पतौ प्रजिते मृते । तस्य निश्शेष वित्तस्याधिपास्याद्वरवणिनी ।।
पुत्रस्य सत्वेऽसत्वे च भवत्साऽधिकारिणी ॥
पृ० १२८. श्लो० ५२, ५३. अर्थात् - पति यदि भ्रष्ट हो जाये, नष्ट हो जाये, पागल हो जाये, सन्यासी हो जाये या मर जाए इन सब हालतों में उस के पुत्र हो चाहे न हो तो पति की सारी सम्पत्तिकी अधिकारिणी उस की पत्नी होती है।
___ वैदिक साहित्य में पुत्र का स्थान बड़ा विचित्र है:पुन्नानी नरकाद्यस्मात् त्रायते पितरं सुतः । तस्मात् पुत्र इति प्रोक्तः स्वयमेव स्वयंभुवा ।।
मनु अ०६. श्लोक १३८ अर्थात्-जिस कारण बेटा “" नाम नरक से पितरों की रक्षा करता है इसी से स्वयं ब्रह्मा ने बेटे को पुत्र कह कर पुकारा है।
इस सत्य की और भी पुष्टि करते हुए मनुजी लिखते हैं:
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com