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________________ [ ३४ ] ब्रह्मा ने मुख से ब्राह्मण की, भुजात्रों से क्षत्रिय की, उरू से वैश्य की और पैरों से शूद्र की उत्पत्ति की। जैन मन्तव्य भी इस के साथ प्रायः मिलता जुलता ही है। जैन धर्म के आदि पुराण के अनुसार भगवान् ऋषभदेव ने हाथ में तलवार पकड़ कर क्षत्रियकी, उरू से चलने का संकेत करके वैश्य की और चरणों से शूद्र की उत्पत्ति की । ब्राह्मणों की उत्पत्ति बाद में ऋषभ स्वामी के पुत्र भरत ने शास्त्र पढ़ाते हुए मुख से की। जैन धर्म में वर्णव्यवस्था प्रारम्भ से कर्म से मानी जाती है किन्तु वैदिक धर्म में विशेष जोर जन्म से वर्ण व्यवस्था मानने पर दिया है । यद्यपि वैदिक धर्म ग्रन्थों में ऐसे भी अनेक प्रमाण हमारे सामने हैं जिन से वर्ण व्यवस्था कर्म से सिद्ध होती है किन्तु व्यापक रूप से जन्म से ही वर्णव्यवस्था प्रचलित रही है। मेरे विचार में जैन शास्त्रों में प्रतिपादित कर्म वर्ण व्यवस्था का परित्याग कर श्राज की जैन समाज जो व्यापक रूप में जन्मगत वर्ण व्यवस्था को मानने लगी है यह जैनियों पर वैष्णवधर्म का ही प्रभाव है। इसी प्रकार शत्रु पर चढ़ाई करने के समय के विषय में भी प्रायः दोनों एक मत ही हैं । जैसे:मार्गशीर्षे शुभे मासि यायाद्यात्रां महीपतिः । फाल्गुनं वाऽथ चैत्रं वा मासौ प्रति यथा बलम् ।। मनु० अ० ७ श्लो० १८२. अर्थात् पवित्र अगहन के मास में राजा युद्ध की यात्रा करे अथवा जैसी अग्नी सामर्थ्य हो उस के अनुसार 'फाल्गुण अथवा चैत्र के महीने में शत्रु के राज्य पर आक्रमण करे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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