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र.ज्य का प्रबन्ध चलाते ये और पूर्ण शक्ति से शत्रु का सामना करके देश की रक्षा करते थे। यहां जैन शास्त्रों में पाए चक्रवती जैन राजाश्र के जीवन से कई उदाहरण लिखे जा सकते है किन्तु अाधुनिक विचार के विद्वान् उन्हें पौगणिक कथाएं कह कर अबहेलना कर देंगे । अतः ऐतिहासिक तथा साहित्यिक दृष्टि से जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकत ऐसा उदाहरण देकर ही पाठकों को जैन धर्म में राज सत्ता का दिग्दर्शन कराने का प्रयत्न किया जायगा।
जिस प्रकार वैदिक और बौद्ध धर्म में राजनीति पर अनेक ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं इसी प्रकार जैन धर्म भी जब उन्नति के शिखर पर था तब इसके विद्वानों ने भी राजनीति विषय पर ग्रन्थ लिखे थे। जैसे २ जैन राजसता उठतो गई जैन राजनैतिक साहित्य का महत्व भी कम होता गया और वह दिन प्रति दिन लुप्त होता रहा । विक्रम की ११ वीं शताब्दी तक केवल "अहनीति शास्त्र" के उदाहरण यत्र तत्र बिखरे मिलते थे । अभी तक यह पता नहीं चल सका कि जैन राजनीति पर लिखे इस ग्रन्थ का कर्ता कौन था । इस शास्त्र का पता भी हमें हेमचन्द्राचार्य कृत "लघ्वहनीति" नामक ग्रन्य से लगता है | कुमारपाल राजा ने अपने गुरु श्री हेमचन्द्राचार्य से यह प्रार्थना की कि वे जैन राजनीति पर छोटा सा अन्य तैयार करें। इस पर हेमचन्द्राचार्य ने "लघ्वहनीति" नामक ग्रन्थ की रचना को । इस प्रन्थ के मंगलाचरण के बाद लिखा है:कुमारपालश्मापालाग्रहेण पूर्व- निर्मितात् । अहंन्नीत्यभिधाच्छास्त्रात् सारमुदधृत्य किंचन ॥ १/६ भूप प्रजा हितार्थ हि शीघस्मृति विधायकम् । लधहनीति सच्छास्त्रं सुखबाधं कराम्यहम् ॥ १७. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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