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प्राकृतम् इत्यादि प्रमाणिक विद्वानों की निरुक्तियों से भी संस्कृत प्राचीन और प्राकृत पीछे की ठहरती है। ठीक इसी प्रकार दिगम्बर
और श्वेताम्बर शब्दों से दिगम्बर सम्प्रदाय की प्राचीनता का अनुमान करना सत्य सिद्ध नहीं होता है ।
___ मेरे एक मित्र ऋग्वेद का प्रमाण देकर दिगम्बर सम्प्रदाय को बहुत प्राचीन सिद्ध करते हैं । उन की यह धारणा है कि उनकी युक्ति बड़ी ही प्रबल है। ऋग्वेद में एक ऋचा है जो इस प्रकार है:मुनयो वातरशनाः पिशंगा वसते मला । (१०/ १३६/ २) केशी केतस्य विद्वानत्सखा स्वादुर्मदिन्तमः । ( ./ १३६/६ ) अर्थात्- ‘ऐसे मुनि जिन की वायु ही कोपोन हो अर्थात् नग्न हो और शरीर पीली सी धूल में भरा हो ।
केशिन मैंने, सिर पर बड़े २ केशों वाला मुनि । जो उस के भावों को ममझता है उस का बड़ा ही प्रिय मित्र होता है।'
आप का कहना है कि ऋग्वेद में आया हुआ इस प्रकार का साधु का वर्णन जैन मुनियों का ही वर्णन हो सकता है क्योंकि जैन साघु पहिले नमावस्था में ही रहते थे। मेरे विचार में यह कल्पना भी कोई सार पूर्ण प्रतीत नहीं होती। जैन धर्म के अति रक्त अन्य किसी धर्म में नग्न साधु नहीं होते थे इस में कोई सत्य नहीं है। ऋग्वेद वैदिक सम्प्रदाय का प्राचीनतम एक प्रमाणिक और महत्वप्रद ग्रन्थ है। वैदिक सम्प्रदाय में भी नम साधु बड़े प्राचीन काल से चले आते हैं और अाजकल भी जहां उन' की संख्या सहस्रों में हैं वहां जैन दिगम्बर साधुओं की संख्या सारे भारतवर्ष में केवल चौदह पन्द्रह तक ही
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