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श्वेताम्बर मत की प्राचीनता"s • এতেন্তোগ্রস্ত
जब किसी समाज, धर्म या सम्प्रदाय में अनेक त्रुटियां तथा न्यूनताएं अपनी अन्तिम सीमा पर पहुंच जाती हैं तो उन्हें सुधारने के लिये किसो सुधारक महापुरुष का जन्म होता है और वह अपने दृष्टिकोण के अनुकूल किसी नये धर्म या सम्प्रदाय को जन्म देता है। इस प्रकार अनादिकाल से प्रवाह रूप संसार में समय, परिस्थिति तथा वातावरण के परिवतन के कारण अनेक धर्म और सम्प्रदायों की उत्पत्ति होती रहती है। किसी भी धर्म अथवा सम्प्रदाय की स्थिरता उस के सिद्धान्तों पर निर्भर है। यदि उस के सिद्धान्त समयानुकूल हैं और समाज के लिये उपयोगी है । तो उसकी उत्तरोत्तर वृद्धि र स्थिरता निश्चित है। यदि उस के नियम समय विरुद्ध हैं तथा समाज को अवनति पथ पर लाने वाले है तो उन का अस्तित्व शीघ्र मिटने में कोई सन्देह नहीं हो सकता । यही कारण है कि ससार में अाजतक सैंकड़ों ऐसे धर्म या सम्प्रदाय उत्पन्न हुए जो अल्पकाल केलिये ही फले फूले और उत्तरोत्तर समय विरुद्ध होने के कारण वे ऐसे मिटते गए कि आज उन का नाम निशान भी नहीं रहा । जो समया. नुकूल थे तथा जिनकी नींव सत्य और सन्मार्ग पर रखी हुई थी वे अनेक प्रतिरोधों का सामना करते हुए अबतक अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं
और संसार को उन्नत पथ की अंर ले जारहे हैं | जैनधर्म भी उन्हीं महान धर्मों में से एक है । इस में भी यद्यपि उत्तरोत्तर अनेक सम्प्रदाय बनते जाते हैं परन्तु वास्तव में परंपरा से चले आते इस के दो ही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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