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अब विद्वान् लोग ऋग्वेद को ३.००० वर्ष का पुराना मानने लगे हैं । इस प्रकार प्रमाण मिलने पर पूर्व के विचार रद्द होते रहते हैं । मुझे पूर्ण विश्वास है कि भविष्य को खोज अवश्य ही तीर्थङ्करी के व्यक्तित्व पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालेगी !
हां यहां प्रसंगवश यह दशांना असंगत न होगा कि इतने प्राचीन ऋग्वेद तथा अन्य वेदों में यत्र तत्र तीर्थङ्करों के नाम आते हैं । सेयाम्मन्नश्वास ऋषभाम् उक्षणो वशामेषा अवमष्टास आहुता ।
ऋग्वेद १०६१/१४ स नेमि राजा परियाति विद्वान् प्रजा पुष्टिं वर्धयमानोऽस्मे स्वाहा ।
यजु० ६२५ ऋग्वेद और यजुर्नेद के इन दो मन्त्रों में जैनियों के अादि तंङ्कर श्री ऋषभ स्वामी और २२ तीर्थङ्कर श्री नेमिनाथ का नाम पाया है। इम से भी जैन धर्म की प्राचीनता पर बड़ा प्रकाश पड़ता है।
इस के अतिरिक्त जैन धर्म का प्राचीनतम नाम “निग्गंठे पवयणे" अर्थात् निम्रन्थ प्रवचन था जैन शब्द का प्रयोग तो संवत् १००० के लगभग प्रयोग में आने लगा। इस के पूर्व जैन शब्द का प्रयोग बहुत ही कम होता था। और इसके स्थान पर "निन्य प्रवचन" का प्रयोग होता था। जैनागम भी इसी सत्य की पुष्टि करते हैं।
जैसे:"नयणं दाहामु तुमं नियट्ठा"।
उत्तराध्ययन अ० १२ श्लो. १६ __ " नो इत्तीर्ण कहं कहित्ता हवइ से निग्ग थे"
उत्त० १६/२
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