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________________ ( १६० ) इस प्रकार वेद में प्रकृति, जीव और परमात्मा इन तीनों तत्त्वों को अनादि माना है। इनमें प्रकृति जड़ है परन्तु ईश्वर और जीव दोनों चेतन हैं। ईश्वर सर्वव्यापक है किंतु जीवात्मा की शक्ति शरीर तक ही सीमित है। ईश्वर सर्वज्ञ है और जीवात्मा अल्पज्ञ है। जोवात्मा अनेक प्रकार के सुख दुःखों के बंधनों में जकड़ा हुआ है किंतु परमात्मा सब प्रकार के बंधनों से मुक्त है। ईश्वर ही सृष्टिकर्ता है। वेद की मान्यता के अनुसार ईश्वर ही सृष्टि का कर्ता धर्ता है। बेद सृष्टि को अनादि नहीं मानता कितु उसका मन्तव्य है कि किसी खास समय में ईश्वर ने सृष्टि को उत्पन्न किया और एक ऐसा भी समय आयगा जब वह सारी सृष्टि का संहार कर देगा। संहार के बाद सारी सृष्टि उसी में लीन होजाएगी। ऋग्वेद में सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन इस प्रकार मिलता है:___ ऋतञ्च सत्यं चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत ततो रायजायत । ततः समुद्रो अर्णवः समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत । अहो रात्राणि विदधद् विश्वात्य मिषतो वशी। सूर्या चन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् । दिवञ्च पृथिवीश्वान्तरिक्षमथो स्वः ॥ ऋग्वेद मं० १०, सू० १६१ अर्थात्-'सृष्टि विकास से पूर्व ईश्वर ने अपने ज्ञान और पराक्रम से प्रथम अनादि उपादान कारण को प्रकट किया। उस समय दिव्य रात्रि थी। उसके पश्चात् श्राकाश व अन्तरिक्ष की स्थापना की। श्राकाश स्थापित करके सांवत्सरिक गति पैदा की गई। फिर संसार को वश में करने वाले परमात्मा ने दैनिक गति की उत्पत्ति की जिससे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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