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रात्रि और दिन होते हैं। संसार के धारण करने वाले सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी तथा अाकाश के अन्य नक्षत्रों को उनके मध्यवत्तौ अन्तरिक्ष सहित उसी प्रकार रचा जैसा उसने पूर्व कल्प में रचा था।'
ऋग्वेद के अतिरिक्त अन्य वेदों में भी सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है। यजुर्वेद में संसार की उत्पत्ति का वर्णन इस प्रकार किया है:
ततो विराईजायत विराजो अधिपूरुषः । स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद् भूमिमथोपुरः ॥ तस्माद् यज्ञात् सर्वहुतः संभृतं पृषदाज्यम् । पशूस्तांश्च वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये ॥ तं यज्ञ वर्हिषी प्रोतन् पुरुषं जातमग्रतः । तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये ॥ ___ अर्थत्-'तब एक प्रदीप्त पिण्ड उत्पन्न हुआ। उसका अधिपति सर्वव्यापक परमात्मा था। तत्पश्चात् उस प्रदीप्त पिण्ड से पृथ्वी तथा अन्य शरीर पृथक् हुए ! उस सर्वपूज्य परमेश्वर ने वनस्पति पैदा की बो भोजनादि के काम में श्राती हैं। उसने पशु बनाए जो हवा, जंगल और बस्ती में रहते हैं। उसने मनुष्यों को उत्पन्न किया जिनमें विद्वान् और ऋषि लोग भी हुए जिन्होंने उस अनादि और उपास्य परमात्मा की पूजा की।
ईश्वर अनादि है, इस सृष्टि का कर्ता है और संहता है यह उपर्युक्त वेद मंत्रों से स्पष्ट है । संसार के निर्माण की पद्धति का वर्णन भी साफ शब्दों में किया गया है। ईश्वर से हो यह सारा ससार उत्पन्न हुश्रा और अन्त में संहार के पश्चात् उसी में यह लीन होजाता है इसी
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