________________
( १५८)
वह अहंरूर तत्व भी स्पा संसार के अन्य पदायों की भाँति उत्पन्न श्रीर नाश होता है या वह अनादि और अविनाशी तत्व है ? यदि वह तत्त्व अनादि और नित्य है तो उस का सम्बन्ध संसार के सादि अनित्य या नाशवान् पदार्थों से क्यों और कैसे सम्बन्ध हुश्रा ? इस प्रकार अनेक जटिल और दुरधिगम्य प्रश्र मानवी बुद्धि के विकास काल में मानव के मस्तिष्क में उत्पन्न हुए । विश्व के भिन्न २ प्रदेशों के मानवों ने इन प्रश्रों का मनन किया और विश्व के वाह्य तथा आन्तरिक रहस्यों को समझने के लिये पूर्ण प्रयत्न किया। अनेक युगों के चिन्तन और मनन के पश्चात् मनुष्य ने अात्म तत्व के रहस्य को समझा और ईश्वरीय ससा की स्थापना हुई। दीर्यकाल के मनन के पश्चात् मानव इस निर्णय पर पहुंच गया कि इस वाह्य संसार से परे आन्तरिक संसार में कोई सर्वज और सर्वशक्तिमान् सता है जिनको ईश्वर करना चाहिये। उस सत्ता को जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है ससार के भिन्न २ धर्मों के विद्वानों और प्राचार्यों ने अपने २ भिन्न २ दृष्टिकोण से अवश्य माना किन्तु ईश्वर की सत्ता को सबने स्वीकार किया। संसार के धमों और सम्प्रदायों की संख्या तो बहुत बड़ी है
और उन सबकी ईश्वर विषयक मान्यता यहां नहीं दी जा सकती। यहां तो केवल वैदिक, जैन और बौद्ध इन तीनों भारत के महान् धों के ईश्वर विषयक मन्तव्य ही सक्षेत्र से दिये जाएंगे।
वैदिक मन्तव्य ।
वैदिक धर्म भारत का एक विशाल और व्यापक धर्म रहा है। अतिप्राचीन वैदिक संस्कृति के आधार पर. ही वैदिक धर्म से अनेक नए सम्प्रदाय निकले और नई २ दार्शनिक शाखाओं का अम हुआ। उन सम्प्रदायों और शास्त्रों की संख्या तो बहुत बड़ी है अतः उन
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com