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लगन ने मनुष्य को निराश नहीं होने दिया। जिस प्रकार का संघर्ष वह श्राज कर रहा है इसी प्रकार अनादि काल से करता आया है; अन्तर केवल इतना है कि श्राज का संघर्ष भौतिकवाद की ओर है और प्राचीन संघर्ष आध्यात्मिक तत्त्व की ओर था, अस्तु, यहां पाठकों के लिये यह दर्शाना है कि जिस समय मनुष्य के मस्तिष्क का विवाम होना प्रारम्भ हुआ उस समय जब २ मानवो बुद्धि प्राकृतिक रहस्यों को न समझ पाई तो उसमें अनेक प्रकार के तर्क वितर्क उठने लगे । प्रकृति के गूढ़ रहस्य बड़े जटिल थे और उनको समझ लेना असम्भव नहीं तो नितान्त कठिन अवश्य था । मानव ने सूर्य के तेत्र, चन्द्रमा की शीतल चान्दनी. तारागण से परिपूर्ण नभमण्डल, क्षितिज की रेखा तक फैले हुए महासागर, हरे भरे विस्तृत अरण्य और गगनचुम्बी पर्वतों की अोर अपना मस्तिष्क दोड़ाया और उनमें जीवन की सुन्दरता और मानवता के माधुर्य को व्यापक रूप में पाया। प्रकृति की इन विभूतियों में उसने अाकर्षण हो श्राकर्षण भरा पाया। इन प्राकृतेक अाकर्षणों के कारण वह जीवन के महत्व को उत्तरोत्तर और अधिक समझने लगा और सांसारिक सुखों के लिये उसकी तृष्णा बढ़ने लगी। किन्तु इस सुखद अनुभव के साथ २ मनुष्य ने ज्वालामुखी पर्वतों का फटना, भुचाल श्राना, बादलों की भयानक गर्जना और उनसे विद्युत् पतन, अतवृष्टि के कारण जन-प्रकोप. और महामारी अ.दि अनेक भयङ्कर रोगों की उत्पत्ति प्रादि अनेक विश्व का विध्वंस करने वाले प्राकृतिक कोप और विश्वों को दे वा और उनका कटु अनुभव किया। प्राकृतिक कोपों का सामना करने की बात तो दूर रही उनके वास्तविक रहस्य को समझना भी उम के लिये कठिन हो गया। मनुष्य ने अग्ना मस्तिष्क लड़ाया और प्रकृति के रहस्यों को समझने का पूर्ण प्रयत्न किया किंतु वे रहस्य शीघ्र ही समझ में आने वाले नहीं थे। उनके समझने के लिये पर्याम समय को श्रावश्यकता थी।
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