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________________ ( १५१ ) के बड़े २ राष्ट्र और शक्तियां संगठित हो रही हैं । सङ्गठन के बिना वर्तमान युग में बड़े २ राष्ट्र भी अपने आपको निर्बल पाते हैं। कहां अल्प सी संख्या वाले हम! इतने बड़े विश्व में क्या है हमारी हस्तो, कभी सोचा आपने ! और फिर इतनी अल्प संख्या में इतनी बड़ी फूट और भेदभाव । अब छोटे २ सद भेदभावों को मिटाने का समय हैं । यदि इन्हें न मिटाया गया तो भयानक पतन अवश्यम्भावी है । अब सङ्गठित होने का समय है । सङ्गठित जाति या धर्म ही संसार में अपनी मता कायम रख सकेंगे। समाज की सारी शक्तियाँ जो व्यर्थ में पारारिक क्षुद्र कलह और वितण्डावाद में लगाई जाती हैं उन्हें समाज के सुन्दर और सुव्यवस्थित निर्माण में लगाना चाहिये । तीर्थकर दिगम्बर थे या श्वेताम्बर थे। कोई मन्दिर में जाकर उनकी पूजा करे, यां मूर्तिपूजा को ठीक न समझे, कोई मुखवस्त्रिका को हाथ में रक्खे या उसको मुख पर ग्ध ले, मुखवस्त्रिका का श्राकार बड़ा हो या छोटा, आदि अनेक साधारण बातों को प्रधानता या महत्त्व देकर उनके लिये कलह या विवाद करने का समय नहीं है । अत्र आवश्यकता है यह समझने की कि तीर्थङ्करों को मानने वाले, जैन संस्कृति को पालने वाले और अनेकान्तवाद में श्रद्धा रखने वाले सब जैन समान हैं । बैन ही क्यों, संसार का प्रत्येक मानव जो उपयुक्त बातों में श्रद्धा रखता है और उनका पालन करता है वह जैन है। अनेकान्तवाद की शण बाकर यदि हम इस प्रकार की विशालता दिखाएँगे तभी हम अपने खोए हुए गौरव को पाने में समर्थ हो सकेंगे। संकुचित वातावरण । आजकल जैन समाज में बहुत संकुचित वातावरण फैला हुआ है। जब दो जैन भाई आपस में मिलते हैं तो सबसे पहला प्रश्न जो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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