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________________ ( १३५ ) जिसकी कल्पना से भी दिल दहल उठता है। उस संहार से बचने के लिये मानवजाति को चाहिये कि वह अहिंसा धर्म की शरण ले और भौतिकवाद के बाह्याकर्षणों को ही सब कुछ न समझे। श्राज का युग अत्यधिक रूप से भौतिकवाद की ओर जा रहा है और आध्यात्मिक तत्त्व की उपेक्षा की जा रही है । यही कारण है कि विश्व के किसी कोने में भी मानसिक या अात्मिक शान्ति नहीं है। मनुष्य ने बड़े २ महत्वप्रद अाविष्कार करके प्रकृति पर विजय पाई है। उसने बड़े आश्चर्यजनक चमत्कार किये हैं किन्तु भौतिकवाद की इस उन्नति से वह आत्मिक शान्ति नहीं प्राप्त कर सका है । उल्टा वह उससे बहुत दूर चला गया है । अात्मिक और मानसिक शान्ति के लिये आध्यात्मिकवाद के रहस्य को समझने की आवश्यकता है जिसकी भौतिकवाद उपेक्षा करता है । श्राध्यात्मिकवाद का सबसे बड़ा श्रादर्श है आत्मिक और मानसिक शान्ति और यदि जीवन उससे वंचित है तो भले ही कितनी ही सम्पत्ति और ऐश्वर्य के साधन मनुष्य के पास हों वे सब निरर्थक हैं । एक अकिंचन पुरुष भी जिसका जीवन शान्तिपूर्ण है उस अनेक वैज्ञानिक साधनों से युक्त समृद्ध-पुरुष से लाख दर्जे अच्छा है जो विक्षुब्ध रहता है और जिसको चिन्ता के मारे निद्रा तक दुर्लभ होती है। आज का युग जो शान्ति से बंचित है उसका मुख्य कारण भौतिकवाद का अधिक विकास और उसकी ओर प्रवृत्ति है। यही कारण है कि हमारे पूर्वज महर्षियों ने भौतिकवाद की उपेक्षा करके अहिंसात्मक आध्यात्मिकवाद का सन्देश मानवजाति को दिया और कहा कि यदि कल्याण चाहते हो तो समता रक्खो और सब प्राणियों को शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करने दो। उन्होंने कहा कि विश्व की व्यवस्था को समीचीन प्रकार से चलाने के लिये अहिंसा धर्म का पालन परमावश्यक है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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