SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३४ ) कल्याण अहिंसा धर्म की शरण में जाकर ही हो सकेगा। अहिंसा धर्म का सबसे बड़ा महामन्त्र या उपदेश है 'यात्मवत् सर्वभूतेषु' अर्थात् संसार में सबको अपने समान समझो। जैसा व्यवहार तुम दूसरों से अपने प्रति चाहते हो वैसा ही दूसरों से भी करो। यदि इस महान् उपदेश के तत्व को संसार के लोग समझे होते और उन्होंने इस पर अमल किया होता तो संसार में बड़े २ युद्धों का सूत्रगत न हुआ होता। गत दो महायुद्धों में मानव जाति का बहुत बड़ी संख्या में संहार हुआ। उस संहार का मुख्य कारण था हिंसा प्रवृत्ति जिसके द्वारा बलवान् राष्ट्र निर्बल राष्ट्र को इड़ा कर जाना चाहता था। उसी प्रकार की प्रवृत्ति वर्तमान समय में भी अनेक राष्ट्रों में दृष्टिगोचर होती है। बलवान् राष्ट्र निर्बल राष्ट्रों को खा जाना चाहते हैं और तरह २ की धमकियों से उन्हें डराते हैं । सारे विश्व में बड़े २ नेताओं और वैज्ञानिकों का झकाव तृतीय महायुद्ध की ओर जा रहा है। बड़े २ वैज्ञानिकों के मस्तिष्क भी दिवानिश इसी प्रकार की खोज में लगे हुए हैं कि किस प्रकार बल्दी से जल्दी कोई ऐग आविष्कार हो सके जिसके द्वारा शीघ्रातिशीघ्र मानव जाति का संहार हो जाये । परमाणु बम और हाइडो इलेक्ट्रिक बम जैसे भयानक और घातक आविष्कारों से भी उनको सन्तोष नहीं हो रहा । वैज्ञानिकों के मस्तिष्क की वह अलौकिक शक्ति जो मानव जाति के उत्थान और निर्माण में लगनी चाहिये थी दुर्भाग्यवश उसके संहार में लगी हुई है। कितनी गिरावर है इस युग की जिसको लोग बिकासवाद का युग कहते हैं। अपने पी संहार के लिये प्रत्त होना ही क्या विकामवाद के युग का लक्षण है ! या हिंसा के गर्त की ओर बढ़ना ही विकासवाद की. निशानी है। यदि इसी प्रकार की मानवसमाज की मनोवृत्ति उत्तरोत्तर पतन की ओर ही बदती गई तो मानव जाति को एक बहुत बड़े संहार में से गुजरना होगा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy