________________
( १२६ )
मेरा विशेष दावा |
अगर हम अपनी हिंसा को अविछिन्न रखना चाहते हैं और सारे समाज को अहिंसक बनाना चाहते हैं तो हमें उसका रास्ता खोजना होगा । मेरा तो यह दावा रहा है कि सत्य, अहिंसा आदि बो यम हैं वे ऋषि मुनियों के लिये नहीं हैं। पुराने लोग मानते हैं कि मनु ने जो यम बतलाए हैं वे ऋषि मुनियों के लिये हैं व्यवहारी मनुष्यों के लिये नहीं हैं । मैंने यह विशेष दावा किया है कि अहिंसा सामाजिक 1 चीज़ है । मष्नुय केवल व्यक्ति नहीं है वह पिण्ड भी है और ब्रह्माण्ड भी। वह अपने ब्रह्माण्ड का बोझ अपने कन्धों पर लिये किरता है । जो धर्म व्यक्ति के साथ खत्म हो जाता है वह मेरे काम का नहीं है मेरा यह दावा है कि अहिंसा सामाजिक चीज़ है नहीं है । मेरा यह दावा है कि सारा समाज सकता है । मैंने इसी विश्वास पर चलने की कोशिश की और मैं मानता हूं कि मुझे उसमें निष्फलता नहीं मिली ।
केवल व्यक्तिगत चीज़
हिंसा का पालन कर
अहिंसा समाज का प्राण है ।
......... मेरे लिये अहिंसा समाज के प्राण के समान चीज़ है
है
:
लिये भी सुलभ
वह सामाजिक धर्म है, व्यक्ति के साथ खतम होने वाला नहीं है । पशु और मनुष्य में यही तो भेद है । पशु को ज्ञान नहीं मनुष्य को है । इसलिये हिंसा उसकी विशेषता है । वह समाज के होनी चाहिये । समाज उसी के बल पर टिका है। किसी समाज में उसका विकास कम हुआ है किसी में अधिक विकास हुआ है । लेकिन उसके बिना समान नहीं टिक सकता ।" महात्मा जी ने अहिंसा धर्म को किस रूप में संसार के सामने रक्खा, किस प्रकार वे उसका पालन स्वयं करते थे और किस प्रकार वे हिंसा का पालन हमारे से करवाना
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com