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करते थे रोटी ती यों ही चल जाती थी। समाज की सेवा ही मुख्य चीज थी। उद्योग करने का उद्देश्य व्यक्तिगत नफा न था। समाज का सङ्गठन ही ऐसा था। उदाहरण :- गांव में दई की जरूरत होती थी वह खेती के लिये औज़ार तैयार करता था लेकिन गांव उसे पैसे नहीं देता था । देहाती समाज पः यह बन्धन लगा दिया था कि उसे अनाज दिया जाय । उसमें भी हिंसा काफ़ी हो सकती थी। लेकिन सुव्यवस्थित समाज में उसे न्याय मिलता था। और किसी समय में समाज सुव्यवस्थित था ऐसा मैं मानता हूं।
शरीर-श्रम । इसी में शरीर श्रम श्राबाता है। मनुष्य अपने श्रम से थोड़ी सी ही खेती कर सकता है। लेकिन अगर लाखों बीघे जमीन के दो चार ही मालिक हो जाते हैं तो बाकी के सब मज़दूर हो जाते हैं । यह वगैर हिंसा के नहीं हो सकता । अगर आप कहेंगे कि वे मजदूर नहीं रखेंगे यन्त्रों से काम लेंगे तो भी हिंसा आ ही जाती है। जिसके पास एक लाख बीघा जमीन पड़ी है उसे यह घुमण्ड तो था ही जाता है कि मैं इतनी ज़मीन का मालिक हु । धारे २ उसमें दूसरों पर सत्ता कायम करने का लालच श्रा जाता है। यन्त्रों की मदद से वह दूर २ के लोगों को भी गुलाम बना लेता है और उन्हें इसका पता भी नहीं होता कि वे गुलाम हो रहे हैं। गुलाम बनाने का एक खूबसूरत तरीका इन्होंने दूढ लिया है। जैसे कोर्ड है एक कारखाना बना कर बैठ गया है। चन्द श्रादमी उसके यहां काम करते हैं। लोगों को प्रलोभन देता है विज्ञापन निकालता है : हिंसक प्रवृत्ति का ऐसा मोहक रास्ता निकाल लिया है कि हम उसमें जाकर फंस जाते हैं। हमें इन बातों पर विचार करना है कि क्या हम उसमें फंसना चाहते हैं ? या उस से बचा रहना चाहते हैं।"
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