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अहिंसक मनुष्य कहां मिलेगा लेकिन वह भी तो पहिले मांसहारी था। बाद में उस ने मांसाहार छोड़ दिया । लेकिन जब मांसाहारी था तब भी अहिंसक तो था ही। छोड़ने पर भी, मैं जानता हूं कि कभी २ जब वह अपनी बहन के पास चला जाता था तब मांस खा लेता था या डाक्टर लोग अाग्रह करते थे तो खा लेता था। लेकिन उस से उस की अहिंसा थे ड़े ही कम हो जाती थी! इस लिये यहां पर हमारी अहिंसा की व्याख्या परिमित है। हमारी अहिसा मनुष्यों तक ही मर्यादित है।
॥ हिंसक और अहिंसक उद्योग ॥
लेकिन मांसाहारी अहिंसक तो बाज़ चीज़ छोड़ ही देता है । जैसे वह शिकार कभी नहीं करेगा। यानी जिस से हिंसा का विस्तार बढ़ता ही जाता है । इन प्रवृत्तियों में वह कभी न पड़ेगा । वह युद्ध में नहीं पड़ेगा । युद्ध में शस्त्रास्त्र बनाने के कारखानों में काम न करेगा । उन के लिये नए २ शस्त्रों की खोज नहीं करेगा। मतलब वह ऐसा कोई उद्योग नहीं करेगा जो हिंसा पर ही श्राश्रित है और हिंसा को बढ़ाता है।
अब काफी उद्योग ऐसे भी है जो जीवन के लिये आवश्यक है लेकिन वे बिना हिंसा के चल ही नहीं सकते । जैसे खेती का उद्योग है ऐसे उद्योग अहिंसा में श्रा जाते हैं । इसका मतलब यह नहीं कि उनमें हिंगा की गुजायश नहीं है अथवा वे बिना हिंसा के चल सकते है। लेकिन उनकी बुनियाद हिंसा नहीं है। और वे हिंसा को बढ़ाते भी
नहीं हैं । ऐसे उद्योगों में होने वाली हिंसा हम घटा सकते हैं और उसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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