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'अहिंसा' शब्द निषेध ।
"जो अहिंसक है उस के हाथ में चाहे कोई भी उद्यम क्यों न रहे उस में वह अधिक से अधिक अहिंसा लाने की कोशिश करेगा ही। यह तो. वस्तुस्थिति है कि बगैर हिंसा के कोई उद्योग चल नहीं सकता। एक दृष्टि से जीवन के लिये हिंसा अनिवार्य मालूम होती है। हम हिंसा को घटाना चाहते हैं और हो सके तो उस का लोप करना चाहते हैं । मतलब यह कि हम हिंसा करते हैं परन्तु अहिंसा की ओर कदम बढ़ाना चाहते हैं । हिंसा को त्याग करने की हमारी कल्पना में से अहिंसा निकली है इस लिये हमें शब्द भी निषेधात्मक मिला है। अहिंसा शब्द निषेधात्मक है।".
॥ अहिंसा को मर्यादित व्याख्या ॥
अर्थातु जो अहिंसा को. मानता है वह उद्योग करेगा उस में कम से कम हिंसा करने का. प्रयत्न करेगा। लेकिन कुछ उद्योग ही.. ऐसे हैं जो हिंसा बढ़ाते हैं। जो मनुष्य स्वभाव से ही अहिंसक है वह ऐसे चन्द एक उद्योगों को छोड़ ही देता है। उदाहरणार्थ यह करना ही नहीं की जा सकतो कि वह कसाई का धंधा करेगा । मेरा मतलब यह नहीं कि मांसाहारी अहिंसक हो ही नहीं सकता। मांसाहार दूसरी चीज़ है। हिन्दुस्थान में थोड़े से ब्राह्मण और वैश्यों को छोड़ कर बाकी के सब तो मांसाहारी हैं हो। किन्तु फिर भी वे अहिंसा को 'परमधर्म' मानते हैं । यहां हम मांसाहारी का हिंसा का विचार नहीं कर रहे हैं। बो मनुष्य. मांसाहारी हैं वे सारे हिंसाबादी नहीं हैं। मैं यह कैसे कह सकता हूं कि मांसाहारी मनुष्य अहिंसा नहीं होता। ऐण्ड ब से बढ़कर
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