________________
( १२१)
लगाया। उन की उपासना भी ससार के साधारण महात्माओं की भाँति निष्क्रिय नहीं थी। वह सक्रिय थी। उन्हों ने केबन अहिमाधर्म के महत्व को समझने में ही अपनी शक्ति नष्ट नहीं की किन्तु · जीवन के व्यवहारिक सामाजिक, आर्थिक, और राजनैतिक अादि मभा क्षेत्रों में अहिंसा धर्म को कार्य रूप में परिणित.. करके देखा और उन्हें सर्वत्र इसका चमत्कार दृष्टिगोचर हुआ।। जो भी आन्दोलन वे चलाते थे उस का मूलाधार अहिंसा होता था और ये उस में सफल होते थे । भारत की स्वतन्त्रता के आन्दोलन की नीव भी महात्मा जी ने अहिमा के सिद्धान्त पर रखी.। बरतानियां जैसी बड़ी सल्तनत के साथ टक्कर भी उन्होंने अहिंसा के शस्त्र के साथ ली। स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिये भारतीयों को अहिंसा के शस्त्र का अभ्यास और उपयोग भी महात्मा जी ने सिखाया। भारत के लोग उन के बताए हुए मार्ग पर चले और उम का परिणाम यह हुआ कि अन्त में भारत को विजय हुई। विदेशियों को भारत भूमि छोड़ कर जाना पड़ा और अनेक सदियों से खोई हुई स्वतन्त्रता को हम ने फिर से पाया । जर्मन और जापान जैसे हे २ शस्त्रधारी जो युद्ध को प्राधान्य देने थे अपनी स्वतन्त्रता से वंचित हो चैटे और भारत अहिंसाधम के वन पर स्वतन्त्र हुअा। यह सब राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के नेतृत्व के कारण हुश्रा। भारत भूमि का यह सभाग्य था कि इस में महात्मा जी जैसे महापुरुष का जन्म हुश्रा । मैं तो इन्हें वास्तव में अहिंसाधर्म का अवतार मानता हूं।
पर्धा में गांधी सेवा मंघ की सभा में एक बार महात्मा जी ने भाषण दिया था जिस में अहिंसा धर्म के महत्व पर प्रकाश डाला था। उम भाषण के कुछ अंश मैं यहां प ठकों के ज्ञान के लिये देता हूं।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com