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समय हिंसा अहिंसा का विचार बिल्कुल छोड़ देना चाहिये। स्त्री को निर्भय होकर अपने सतीत्व की रक्षा के लिये हिंसा-अहिंसा का विचार छोड़ कर जिस प्रकार भी हो सके दुष्ट का सामना करना चाहिये और मर मिटने तक का संकोच न करना चाहिये । दर्शक को भी स्त्री की रक्षा के लिये अपनी जान की बाजी लगा देना चहिये । जो सच्चे अहिंग-धर्म को समझता है और उसका पालन करता है वह दुष्ट के सामने कभी भी कायरता नहीं दिखाता । वह वीरों की तरह या तो दुष्ट को खतम कर डालता है या स्वयं लड़कर मिट जाता है । इस लिये अहिंसा धर्म वीरों का धर्म है। कायर और डरपोक इस धर्म का पालन नहीं कर सकते।
राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी को यदि बीम: सदी के अहिंसा के अवतार मान लिया जाये तो इस में अतिशयोक्ति न होगी। बहुत से विद्वानों ने महात्मा गांधी की तुलना भगवान् महावीर और महात्मा बुद्ध से की है और बहुत से इन को उन से भी बढ़ा चढ़ा कर मानते 'हैं । निस्सन्देह कुछ लोगों को इस से इतराज़ भी है किन्तु कुछ भी हो मैं अपने दृष्टिकोण से यह दावे से कह सकता हूं कि पूर्वावतारों या पूर्वाचार्यों की भाँति ही महात्मा जी ने अहिंसा के वास्तविक स्वरूप को समझा था। उन्हों ने अपने जीवन में सुचारु रूप से अहिंसाधर्म का पालन किया और विश्व में उस का प्रचार किया। मैं तो कहूंगा कि महात्मा गांधी की अहिंसा में कुछ और भी विशेषता है जिस के कारण संसार में आज उस का इतना महत्व है। बीसवीं सदी जैसे विकास वाद के युग में राजनैतिक क्षेत्र में अहिंसाधर्म को जो ऊंचा स्थान मिला है इस का श्रेय राष्ट्र पिता महात्मा गांधी को ही जाता है ।
महात्मा जी ने अपना सारा जीवन अहिंसाधर्म की उपासना में
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