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________________ ( १२२) की और अपने शरीर की रक्षा करे | ईश्वर ने उसे नाखून दिये हैं, दांत दिये हैं और ताकत दी है । वह इनका उपयोग करे और करत २ मर जाय । मौत के भय से युक्तं हर एक पुरुष या स्त्री स्वयं मर के अपनी और अपनों की रक्षा करे । सच तो यह है कि मरना हमें पसन्द नहीं होता। हम जिये आखिर हम घुटने टेक देते हैं। कोई मरने के बदले सलाम करना पसन्द करता है, कोई धन देकर जान छुड़ाता है, कोई मुंह में तिनका लेता है और कोई चींटी की तरह रेंगना पसन्द करता है। इसी तरह कोई स्त्री लाचार होकर जूझना छोड़ पुरुष का पशुता के वश होजाती है। ये बातें मैंने तिरस्कारवश नहीं लिखीं; केवल वस्तु स्थिति का ही जिक्र किया है। सनामी से लेकर सतीत्वभंग तक की सभी क्रियाएँ एक ही चीज़ की सूचक है । जीवन का लोभ मनुष्य से क्या क्या नहीं कराता ! अतएव जो जीवन का लोभ छोड़कर जीता है वही जीवित रहता है । 'तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः' इस मन्त्र के अर्थ को हर एक पाठक समझ ले और कण्ठाग्र कर ले।" दर्शक पुरुष क्या करें ? _ 'यह तो स्त्री का धर्म हुआ लेकिन दर्शक पुरुष क्या करें ? सच पूछो इस का जवाब मैं ऊपर दे चुका हूं, यह दर्शक न रह कर । रक्षक बनेगा । वह खड़ा २ देखेगा नहीं। वह पुलिस को नहीं टूटने जायेगा वह रेल को जञ्जोर खींचकर अपने आपको कृतार्थ नहीं मानेग । प्रगर वह अहिंसा को बानता होगा तो उस का उपयोग करते २ मर मिटेगा और संकट में फंसी बहन को उबारेगा । अहिंसा से नहीं हिंसा दाग बहन की रक्षा करेगा।' महात्मा जी के इस उत्तर से यह स्पष्ट है कि दुष्ट को दण्ड देते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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