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________________ ( १२१) रक्षा करने को पाञ्चवाँ यज्ञ बताया है। दुष्ट आततायी और शत्रु के 'मारने में यदि कुछ सामान भी ली जाए तो भी वह 'अहिंसा धर्म की ओर ही मनुष्य को बढ़ाती है। विशेषजन्य अल्प हिंसा से भविष्य में होने वाली महती हिंसा से मुक्ति मिलती है। विरोध न करके अपने विचारों को कुचलना, कायरता दिखाना और शत्रु का शिकार बन जाना यह क्या हिंसा नहीं है ? इस सत्य का पोषण करते हुए और आत्म-संरक्षण पर जोर देते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी लिखते हैं: "आततायी के सामने कायर बन जाना, भाग जाना या मन से हिंसा करते रहना ज्यादा बुरा है। उसकी अपेक्षा तो निर्भय और बहादुर बन कर हिंसा करना ही अच्छा है। क्योंकि इस रास्ते किसी न किसी दिन मनुष्य अहिंसा तक पहुंच जायगा।" एक बार एक बहन ने महात्मा जी को पत्र लिखा कि यदि कोई दैत्य जैसा पुरुष राह चलती स्त्री पर बलात्कार करे तो ऐसे संकट में फसी हुई वह क्या करे ? दर्शक क्या करें ? इसके उत्तर में, महात्मा बी ने लिखा: .. . . . 'असल चीज़ तो यह है कि स्त्रियाँ निर्भय बनना सीख जाएँ । मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि जो स्त्री निडर है और दृढ़तापूर्वक यह मानती है कि उसकी पवित्रता ही उसके सतत्त्व की सर्वोत्तम दोल है, उसका शील सर्वथा सुरक्षित है । .............. निडरता या प्रास्था यह शिक्षा एक दिन मैं नहीं मिल सकती । अत एवं यह भी समझ लेना चाहिये कि इस दरम्यान क्या किया जा सकता है। जिस स्त्री पर इस तरह का हमला हो, वह हमले के समय हिंसा अहिंसा का विचार न करे। उस ममय अपनी रक्षा ही उसका परम धर्म है। उस संमक यो साधन उसे सूझे उसका उपयोग करके वह अपनी पवित्रता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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