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________________ .1 kira-e-K.. ॥ अहिंसा परमो धर्मः ॥ अहिंसा एक महान् धर्म है। हिंसा से निवृत्त होने का नाम ही अहिंसा है। श्रात्मा के आवागमन या पुनर्जन्म पर विश्वास रखने से प्राणीमात्र के प्राणों के प्रति प्रतिष्ठा स्वयं पैदा हो जाती है । आवागमन का सिद्धान्त प्राणीमात्र के प्रति समता रखने का आदेश देता है । वह कहता है कि जिस प्रकार तुम अपने दुःख का अनुभव करते हो इसी प्रकार तुम्हें पराए का भी करना चाहिये। संसार में मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि छोटे से बड़े तक जितने भी जीव हैं सब समान है । भिन्न २ कर्मों के कारण से वे भिन्न २ योनियों में पैंदा हुए हैं । सुख दुःख सब को मनुष्य की तरह ही होता है श्रतएव उन सब के दुःव को अपने दुःख के सन समझना चाहिये । जो पुरुष ऐसा करता है वह महापुरुष कहलाता है। यही कारण है कि विश्व के प्रायः सभी धर्म किसी न किसी रूप में अहिंसा परमोधर्मः, को श्रोर मनुष्य को प्रेरित करते हैं। ___ भारत के अतिप्राचीन और प्रधान धर्म वैदिक, जैन और बौद्ध धर्मों के अवतारों और प्राचार्यों ने भी अहिंसा धर्म को जीवनकल्याण के लिये महान् धर्म बताया है। तीनों धर्मों के प्राचार्य और महर्षि अहिंसा पालन का उपदेश देते श्राए हैं। किन्तु समय की गति बड़ी विचित्र है । प्रत्येक सदीमें नगीन परिस्थिति और वातावरण के कारण भिन्न २ विचार धारा के व्यक्ति पैदा होते रहते हैं। कुछ लोग स्वार्थ पश अपने जीवन को धर्म के अनुकून न बना कर धर्म को अपने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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