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________________ (१७.) - - का पालन करवाने के लिये यह अ यावश्यक है कि समाज उन को धार्मिक वातावरण में रक्खे । किन्तु ब्रह्मवर्य का पालन कोई बच्चों का खेल नहीं है । जबानी बमा खर्च सरल काम होता है किन्तु इन्द्रियोंका दमन बड़ा कठिन काम है । संसार का इतिहास ऐसे उदाहरणो से भरा पड़ा है कि बड़े २ ज्ञानी. ऋषि और मुनियों को भी काम के बाणों के श्रागे हार खानी पड़ी। बड़ो २ ज्ञान चर्चा करने वाले, ब्रम्नवर्य और सयम का उपदेश देनेवाले उपदेशक और उसका भवण करने वाले श्रावक क्या सच्चे हृदय से वह कह सकते हैं कि इन्द्रिय निरोध मरल काम है ? फिर भला हर एक विधवा से यह आशा करनी कि वह अवश्य हो इन्द्रिय निरोध कर लेगी कितना भ्रमपूर्ण है ! हमारी समाज में ऐसे अनेकों घर हैं जहां माता पिता बड़ी. उमर में भी कामवासना का त्याग नहीं करते और उनकी युवावस्था से परिपूर्ण बाल. विधवा कन्याएं वैधव्य को ज्वाला में जला करती हैं । ऐसे माता पिता को चाहिये कि वे स्वयं संयम का पालन करें और अपनी कन्या को मास्तिक और धार्मिक वातावरण में रखें जिस से उस के विचार विकृत न होने पावें । किन्तु इसके विपरीत अाज कल के अधिकतर माता पिता स्वयं तो विनासपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं और अपनी अवधि कन्याश्रोसे असभवको सभावना करते हैं। प्रोत्साहन स्वयं देते हैं और जब अपरिपक्व अनुभव वाली कन्या सन्मार्ग से पतित होतो है तो शास्त्र की प्राशा के विरुद्ध बाने क सम्पूर्ण ज्ञान को उस पर थापने में कोई कमर पाकी नहीं रखते। कोई दूसरा अपराध करे तो शास्त्र विमुख होनेकी दुहाई दी जाती है और स्वयं अपराध हो तो शास्त्र की बात भी नहीं पूछी बातो। प्रस्तु, मेरा कहने अभिप्राय यही है कि विधवानों के लिये सास्विक और धार्मिक वातावरण पैदा करना और उसी में उनको रम्बना यह समाज का परम कर्तव्य है । यदि कोई सन्मार्ग से पतित हो भी जाये तो उस पर शास्त्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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