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स्त्रियों के साथ भी शिष्टाचार का वर्ताव किया जाता था। जैन सभ्यता इतनी उत्कृष्टता पर पहुंची हुई थी कि उस के सब कार्य मर्यादित थे ।
॥ नारी सम्मान की पराकाष्ठा ॥
श्रमण संस्कृति के विकास युग में जैनसमाज में स्त्रियों के साथ इतने उच्च शिष्टाचार का व्यवहार किया जाता था कि पत्नी तक पर श्राचरण भ्रष्टता का संदेह होने पर भी पति उन से दुर्व्यवहार नहीं करते थे । प्राचीन जैनसमाज में मर्यादा का उलंघन करना अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था । मर्यादा को गृहस्थ जीवन के माधुयं की नींव समझा जाता था । जैन शास्त्रों के प्रखर विद्वान् श्री शीलाङ्काचार्य कृत महापुरिसचरिय ' नामक ग्रन्थ में प्रियदर्शना की एक कथा आती है जो उपर्युक्त सत्य को प्रमाणित करती है :
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पर विदेह में अपराजिता नाम की एक नगरी थी। वहां अनेक गुणों से अलंकृत ईशानचन्द्र नाम का राजा राज्य करता था । उसो नगरी में चन्दन दास नाम का एक सम्पत्तिशाली सेठ भी रहता था जिम के पुत्र का नाम सागरचन्द्र था । एक बार सागरचन्द्र, राजा ईशानचन्द्र के दर्शनार्थ राजकुल में गया । राजा ने श्रासन ताम्बूल दि से उस का स्वागत किया और कुशलता पूछी । तत्र सागरचन्द्र ने कहा कि महाराज ऋतुराज वसंत अपने पूर्ण वैभव के साथ प्रारम्भ हो गया है । आप कीडोद्यान में चलने की कृपा करें । राजा ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया और सारी नगरी में यह मुनादी करवादी कि महाराजाधिराज मोदिन प्रातः रतिकुल गृह उद्यान में पधारेंगे । अतः नगर के सब स्त्री पुरुष अपने २ वैभव के अनुमार खूब धूमधाम से उद्यान की शोभा बढ़ाएं। प्रातःकाल महाराज धिराज अपने अनेक रमणीजन
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