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हैं कि भारत की संस्कृति में स्त्री का स्थान बहुत ऊँचा है। पुरुष और स्त्री दोनों का सम्बन्ध अन्योन्याश्रित है । दोनों एक दूसरे के बिना नही रह सकते। पुरुष जनक है तो स्त्रो जननी है। भारतीय संस्कृति में जननी का स्थान बहुत ऊँचा है:
जननी जन्मभूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसी ॥
अर्थात्:- जनन और जन्मभूमि ये दोनों स्वर्ग से भी बढ़ कर हैं । जहां और बहुत से देश अपने देश को पितृभूमि कहते हैं हम अपने देश को मातृभूमि के नाम से पुकारते हैं। यह मातृत्व के प्रति असीम श्रद्धा का ही परिणाम है कि भारतीय द्वन्द नामों में भो प्रथम स्थान स्त्री को दिया जाता है। जैसे- सीता राम, राधाकृष्ण, गौरीशंकर, स्त्री पुरुष और माता पिता आदि। इन सब नामों में स्त्री का स्थान पहिले है। इस का कारण यही है कि स्त्री में मातृत्व का माधुर्य और महत्व है । पुरुष उस के बिना कुछ नहीं कर सकता और वह पुरुष को सन्मार्ग दिखाने वाली है और उस के भविष्य का निर्माण करने वाली है । जिस राष्ट्र की माताएं सुयोग्य हों वहां महापुरुष जन्म लेते हैं । भगवान् राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध और गांधी आदि अनेक महात्माओं
और महापुरुषों को माताश्रों ने ही जन्म दिया अतएव मनु महाराज के इस महावाक्य को कभी नहीं भूलना चाहिये:यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः । यत्रतास्तु न. पूज्यन्ते, सर्वास्तत्राऽफलाः क्रियाः ॥
मनु श्र. ३ श्लोक ५६. अर्थात्:- जिस किसी भी कुल में स्त्रियों का पूजन या प्रादर सत्कार भली प्रकार होता है उस कुल पर देवता तक प्रसन्न रहते है।
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