SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ८३ ) श्रयात्:- राम कल्याण बुद्धि ठहरे वे अपने प्रिय पात्रों के कल्याण की कामना करने वाले हैं। वह मेरे लिये किसी प्रकल्याण की वस्तु की क्या कभी कल्पना भी कर सकते हैं । यह सब मेरे ही जन्मान्तर के पापों का फल है। ये हैं उच्चावरण और सहनशीलता को पराकाष्ठा के आदर्श उदाहरण जो भारत की नारियों ने संसार के सामने रखे हैं। कला कौशन और भौतिक विद्या में तो पाश्चात्य देशों को महिलाएं भी बड़ी उन्नति कर गई हैं किन्तु भारतीय नारी में जो खास विशेषता है वह है ब्रह्म विद्या के क्षेत्र में उतरने की ! यह तपस्यापूर्ण आध्यात्मिक विशेषता अन्य देश की स्त्रियों में कम ही मिलती है । याज्ञवल्क्य ऋषि संसार के जीवन से विरक्त हैं। गए । जब वह अरण्य में जाने लगे तो उन्होंने अपनी पत्नी मैत्रेयी से जाने की आज्ञा मांगी। मैत्रेयी को ऐश्वर्य धन दौलत देते हुए याज्ञवल्क्य ने कहा कि तुम संसार में रह कर स पन और शान्तिमय जीवन व्यतीत करना । इसके उत्तरमें मैत्रेयी ने कहा:येनाहं नामृता स्यां तेनाहं किं कुर्याम् ॥ (वृहदारण्यक) अर्थात्:- क्या मैं इस धन दौलत से अमर हो जाऊँगी जिससे मुझे अमरता प्राप्त न हो उस वस्तु को लेकर मैं क्या करूँगी १ भोगों में कभी शान्ति नहीं मिला करती। भारत की स्त्री के इस प्रकारके प्राध्यास्मिक और सत्यपूर्ण उदाहरण स्त्री जाति के महान् गौरव को सदा बढ़ाते रहेंगे। ___इस प्रकार जब हम प्राचीन भारतीय साहित्य का विश्लेषण करते हैं और उस की गहराई तक पहुंचते हैं तो इस निर्णय पर पहुँचते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035261
Book TitleShraman Sanskriti ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Chandra Jain
PublisherP C Jain
Publication Year1951
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy