________________
( ८२ )
यन्ती आदि अनेक हिन्दू महिलाओं के चरित्र इस सत्य के अलन्त उदाहरण हैं । रावण जब सीता को बलात् उठा कर ले गया तो लंका में जाकर उसने सीता को बहुत लालच दिये, प्रार्थना की और बहुत डराया भी किन्तु उस के कहने की बिल्कुल अवहेलना करते हुए सीता ने जो कुछ कहा वह भारतीय नारी के गौरव को सदा बढ़ाता रहेगा । सीता ने कहा:
-
चरणेनापि सव्येन न स्पृशेयं निशाचरम् । रावणं किं पुनरहं कामयेयं विगर्हितम् ॥
--
अर्थात्ः - इस निशाचर रावण से प्रेम करने की बात तो दूर रही मैं तो इसे अपने बांए पैर से भी नहीं
छू
सकती ।
इसी प्रकार प्रजा के अनुरंजन के लिये राम ने अपनी प्राणवल्लभा सीता को बन में त्यागने का निश्चय कर लिया । सीता उस समय गर्भवती थी । जंगल में छोड़ने का भार लक्ष्मण पर छोड़ा गया और सीता को यह रहस्य घर पर नहीं बताया गया । जंगल में छोड़ते हुए लक्ष्मण ने जब सीता को यह बताया कि राम ने उसका त्याग कर दिया है तो सीता को यह वज्रपात के समान लगा जनता के समक्ष सीता की अग्नि परीक्षा हो चुकी थी और यह सिद्ध हो चुका था कि उस का चरित्र निर्मल था फिर उसपर संदेह क्यों किया जाय ? फिर गर्भावस्था का समय । कितना कठिन है ऐसी घोर विपत्ति में धीरज रखना ? परन्तु सीता मानती थी कि उस के पति मर्यादा पुरुषोत्तम है । वे उसका बुरा कभी नहीं चाह सेकते । उसने लक्ष्मण से कहा :
―
कल्याण वुद्धेरथवा तवायं न कामचारो मयि शंकनीयः । ममैव जन्मान्तरपातकानां विपाकविस्फूर्जथुर प्रमेयः ॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
.
www.umaragyanbhandar.com